यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
गो-दान
१२१
 


छाती पर चढ़ बैठी। दारोगा ने जब बहुत मानता की,तब जाकर उसे छोड़ा। कुछ दिन तक तो लोग धनिया के दर्शनों को आते रहे। वह बात अब पुरानी पड़ गयी थी;लेकिन गाँव में धनिया का सम्मान बहुत बढ़ गया। उसमें अद्भुत साहस है और समय पड़ने पर वह मर्दो के भी कान काट सकती है।

मगर धीरे-धीरे धनिया में एक परिवर्तन हो रहा था। होरी को पुनिया की खेती मे लगे देखकर भी वह कुछ न बोलती थी। और यह इसलिए नहीं कि वह होरी से विरक्त हो गयी थी; बल्कि इसलिए कि पुनिया पर अब उसे भी दया आती थी। हीरा का घर से भाग जाना उसकी प्रतिशोध-भावना की तुष्टि के लिए काफ़ी था।

इसी बीच में होरी को ज्वर आने लगा। फ़स्ली बुखार फैला था ही। होरी उसके चपेट में आ गया। और कई साल के बाद जो ज्वर आया,तो उसने सारी बकाया चुका ली। एक महीने तक होरी खाट पर पड़ा रहा। इस बीमारी ने होरी को तो कुचल डाला ही,पर धनिया पर भी विजय पा गयी। पति जब मर रहा है,तो उममे कैसा बैर। ऐसी दशा में तो बैरियों में भी बैर नहीं रहता,वह तो अपना पति है। लाख बुरा हो;पर उमी के माथ जीवन के पचीस साल कटे है,सुग्व किया है तो उसी के साथ,दुःख भोगा है तो उसी के साथ,अब तो चाहे वह अच्छा है या बुरा,अपना है। दाढीजार ने मुझे सबके सामने मारा,सारे गाँव के सामने मेरा पानी उतार लिया;लेकिन तब से कितना लज्जित है कि सीधे ताकता नहीं। खाने आता है तो सिर झुकाये खाकर उठ जाता है,डरता रहता है कि मैं कुछ कह न बैठूँ।

होरी जब अच्छा हुआ,तो पति-पत्नी में मेल हो गया था।

एक दिन धनिया ने कहा--तुम्हें इतना गुस्सा कैसे आ गया। मुझे तो तुम्हारे ऊपर कितना ही गुस्सा आये मगर हाथ न उठाऊँगी।

होरी लजाता हुआ बोला--अब उसकी चर्चा न कर धनिया! मेरे ऊपर कोई भूत सवार था। इसका मुझे कितना दुःख हुआ है,वह मैं ही जानता हूँ।

'और जो मैं भी उस क्रोध में डूब मरी होती!'

'तो क्या मैं रोने के लिए बैठा रहता? मेरी लहाश भी तेरे साथ चिता पर जाती।'

'अच्छा चुप रहो,बेबात की बात मत बको।'

'गाय गयी सो गयी,मेरे सिर पर एक विपत्ति डाल गयी। पुनिया की फिकर मुझे मारे डालती है।'

'इसीलिए तो कहते हैं,भगवान घर का बड़ा न बनाये। छोटों को कोई नहीं हँसता। नेकी-बदी सब बड़ों के सिर जाती है।'

माघ के दिन थे। मघावट लगी हुई थी। घटाटोप अँधेरा छाया हुआ था। एक तो जाड़ों की रात,दूसरे माघ की वर्षा। मौत का-सा सन्नाटा छाया हुआ था। अँधेरा तक न सूझता था। होरी भोजन करके पुनिया के मटर के खेत की मेंड़ पर अपनी मडै़या में लेटा हुआ था। चाहता था,शीत को भूल जाय और सो रहे;लेकिन तार-तार कम्बल और फटी हुई मिर्जई और शीत के झोंकों से गीली पुआल। इतने शत्रुओं के सम्मुख