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गोदान
 

दातादीन ने शोभा से पूछा--तुम कुछ जानते हो शोभा, क्या बात हुई?

शोभा ज़मीन पर लेटा हुआ बोला--मैं तो महाराज, आठ दिन से बाहर नहीं निकला। होरी दादा कभी-कभी जाकर कुछ दे आते हैं,उसी से काम चलता है। रात भी वह मेरे पास गये थे। किसने क्या किया,मैं कुछ नहीं जानता। हाँ,कल साँझ को हीरा मेरे घर खुरपी माँगने गया था। कहता था,एक जड़ी खोदना है। फिर तब से मेरी उससे भेंट नहीं हुई।

धनिया इतनी शह पाकर बोली--पण्डित दादा,वह उसी का काम है। सोभा के घर से खुरपी माँगकर लाया और कोई जड़ी खोदकर गाय को खिला दी। उस रात को जो झगड़ा हुआ था,उसी दिन से वह ग्वार खाये बैठा था।

दातादीन बोले--यह बात साबित हो गयी,तो उसे हत्या लगेगी। पुलिस कुछ करे या न करे,धरम तो बिना दण्ड दिये न रहेगा। चली तो जा रुपिया,हीरा को बुला ला। कहना, पण्डित दादा बुला रहे हैं। अगर उसने हत्या नहीं की है,तो गंगाजली उठा ले और चौरे पर चढ़कर क़सम खाय।

धनिया बोली--महाराज,उसके क़सम का भरोसा नहीं। चटपट खा लेगा। जब इसने झूठी क़सम खा ली,जो बड़ा धर्मात्मा बनता है,तो हीरा का क्या विश्वास।

अब गोबर बोला--खा ले झूठी कसम। बन्स का अन्त हो जाय। बूढ़े जीते रहें। जवान जीकर क्या करेंगे!

रूपा एक क्षण में आकर बोली--काका घर में नहीं है, पण्डित दादा! काकी कहती हैं,कहीं चले गये हैं।

दातादीन ने लम्बी दाढ़ी फटकारकर कहा--तूने पूछा नहीं,कहाँ चले गये हैं? घर में छिपा बैठा न हो। देख तो सोना,भीतर तो नहीं बैठा है।

धनिया ने टोका--उसे मत भेजो दादा! हीरा के सिर हत्या सवार है,न जाने क्या कर बैठे।

दातादीन ने खुद लकड़ी सँभाली और खबर लाये कि हीरा सचमुच कहीं चला गया है। पुनिया कहती है,लुटिया-डोर और डण्डा सब लेकर गये हैं। पुनिया ने पूछा भी,कहाँ जाते हो;पर बताया नहीं। उसने पाँच रुपए आले में रखे थे। रुपए वहाँ नहीं हैं। साइत रुपए भी लेता गया।

धनिया शीतल हृदय से बोली--मुंँह में कालिख लगाकर कहीं भागा होगा।

शोभा बोला--भाग के कहाँ जायगा। गंगा नहाने न चला गया हो।

धनिया ने शंका की--गंगा जाता तो रुपए क्यों ले जाता,और आजकल कोई परब भी तो नहीं है?

इस शंका का कोई समाधान न मिला। धारणा दृढ़ हो गयी।

आज होरी के घर भोजन नहीं पका। न किसी ने बैलों को सानी-पानी दिया। सारे गाँव में सनसनी फैली हुई थी। दो-दो चार-चार आदमी जगह-जगह जमा होकर इसी विषय की आलोचना कर रहे थे। हीरा अवश्य कहीं भाग गया। देखा होगा कि