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गोदान
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कोई उनकी फुँदनेदार टोपी सिर पर रखे लेता था, कोई उनकी राइफल कन्धे पर रखकर अकड़ता हुआ चलता था, कोई उनकी कलाई की घड़ी खोलकर अपनी कलाई पर बाँध लेता था। मिर्ज़ा ने खुद खूब देशी शराब पी और झूम-झूमकर जंगली आदमियों के साथ गाते रहे।

जब ये लोग सूर्यास्त के समय यहाँ से विदा हुए तो गाँव-भर के नर-नारी इन्हें बड़ी दूर तक पहुँचाने आये। कई तो रोते थे। ऐसा सौभाग्य उन गरीबों के जीवन में शायद पहली ही बार आया हो कि किसी शिकारी ने उनकी दावत की हो। ज़रूर यह कोई राजा है, नहीं तो इतना दरियाव दिल किसका होता है। इनके दर्शन फिर काहे को होंगे!

कुछ दूर चलने के बाद मिर्जा़ ने पीछे फिरकर देखा और बोले--बेचारे कितने खुश थे। काश मेरी जिन्दगी में ऐसे मौके रोज आते। आज का दिन बड़ा मुबारक था।

तंखा ने वेरुखी के साथ कहा––आपके लिए मुबारक होगा, मेरे लिए तो मनहस ही था। मतलब की कोई बात न हुई। दिन-भर जंगलों और पहाड़ों की खाक छानने के बाद अपना-सा मुँह लिये लौट जाते है।

मिर्ज़ा ने निर्दयता से कहा––मुझे आपके साथ हमदर्दी नही है।

दोनों आदमी जब बरगद के नीचे पहुँचे, तो दोनों टोलियाँ लौट चुकी थीं। मेहता मुँह लटकाये हुए थे। मालती विमन-सी अलग बैठी थी,जो नयी बात थी। राय साहब और खन्ना दोनों भूखे रह गये थे और किसी के मुंह से बात न निकलती थी। वकील साहब इसलिए दुखी थे कि मिर्जा़ ने उनके साथ बेवफ़ाई की। अकेले मिर्ज़ा साहब प्रसन्न थे और वह प्रसन्नता अलौकिक थी।


जब से होरी के घर में गाय आ गयी है, घर की श्री ही कुछ और हो गयी है। धनिया का घमण्ड तो उसके संभाल से बाहर हो-हो जाता है। जब देखो गाय की चर्चा।

भूसा छिज गया था। ऊख में थोड़ी-सी चरी वो दी गयी थी। उसी की कुट्टी काटकर जानवरों को खिलाना पड़ता था। आंखें आकाश की ओर लगी रहती थीं कि कब पानी बरसे और घास निकले। आधा आसाढ़ बीत गया और वर्षा न हुई।

सहसा एक दिन बादल उठे और आसाढ़ का पहला दौगड़ा गिरा। किसान खरीफ़ बोने के लिए हल ले-लेकर निकले कि राय साहब के कारकुन ने कहला भेजा, जब तक बाकी न चुक जायगी किसी को खेत में हल न ले जाने दिया जायगा। किसानों पर जैसे वज्रपात हो गया। और कभी तो इतनी कड़ाई न होती थी, अबकी यह कैसा हुक्म। कोई गाँव छोड़कर भागा थोड़ा ही जाता है। अगर खेती में हल न चले, तो रुपए कहाँ से आ जायेंगे। निकालेंगे तो खेत ही से। सब मिलकर कारकुन के पास जाकर रोये। कारकुन का नाम था पण्डित नोखेराम। आदमी बुरे न थे; मगर मालिक का हुक्म था। उसे कैसे टालें। अभी उस दिन राय साहब ने होरी से कैसी दया और धर्म की बातें की थीं और आज