तुलसी की काव्य-पद्धति काम चलाया गया है । 'रेखा' शब्द न लाने से अर्थ विल्कुल लापता हो गया है। अनुवाद की यह असफलता समास या चुस्ती के प्रयास के कारण हुई है । नहीं तो गोस्वामीजी के समान संस्कृत उक्तियों का अनुवाद करनेवाला हिंदी का और दूसरा कवि नहीं। दोहा- वली में जितने क्लिष्ट दोहे हैं उनकी क्लिष्टता का कारण यही समास- शैली है। ऐसे दोहों में 'न्यूनपदत्व' दोष प्रायः पाया जाता अनुकरण मनुष्य के स्वभाव के अंतर्गत है। गोस्वामीजी ने जैसे सब प्रकार की प्रचलित पद्य-शैलियों या छंदों में रचना की है वैसे ही कहीं दो-एक जगह कूट और आलंकारिक चमत्कार आदि का भी कौशल दिखा दिया है जिसके उदाहरण 'दोहावली' में मिलेंगे। 'दोहावली' में कुछ दोहे ज्योतिष की परिभाषाओं और संकेतों को लेकर रचे गए हैं। बात यह है कि 'दोहावली' में गोस्वामीजी कवि और सूक्तिकार, इन दोनों रूपों में विराजमान हैं। भक्ति और प्रेम का स्वरूप व्यक्त करनेवाले दोहे तो 'काव्य' के अंतर्गत लिए जायँगे, पर नीति-परक दोहे 'सूक्ति' की श्रेणी में स्थान पाएँगे। 'दोहावली' के समान 'रामचरित-मानस' में भी गोस्वामीजी कवि के रूप में ही नहीं धर्मोपदेष्टा और नीतिकार के रूप में भी हमारे सामने आते हैं। 'मानस' के काव्य-पक्ष का तो कहना ही क्या है। उसके भीतर मनुष्य-जीवन में साधारणत: आनेवाली प्रत्येक दशा और प्रत्येक परिस्थिति का सन्निवेश तथा उस दशा और परिस्थिति का अत्यंत स्वाभाविक, मर्मस्पर्शी और सर्वग्राह्य चित्रण है। जैसा लोकाभिराम राम का चरित था, वैसी ही प्रसादमयी गंभीर गिरा, संस्कृत और हिंदी दोनों में, उसके प्रकाश के लिये मिली । इस काल में तो 'रामचरित-मानस' हिदू-जीवन और हिंदू-संस्कृति का सहारा हो गया है। भारतवर्ष के जिस कोने में लोग इस ग्रंथ को पूरा पूरा नहीं भी समझ सकते, वहाँ भी वे थोड़ा-बहुत जितना . .
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