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गोस्वामी तुलसीदास

. गोस्वामी तुलसीदास बड़े सब व्यापारों तक पहुँचनेवाला है, समस्त मानवी प्रकृति का रंजन करनेवाला है। इस राज्य की स्थापना केवल शरीर पर ही नहीं होती. हृदय पर भी होती है। यह राज्य केवल चलती हुई जड़ मशीन नहीं है-आदर्श व्यक्ति का परिवर्धित रूप है। इसे जिस प्रकार हाथ-पैर हैं, उसी प्रकार हृदय भी है, जिसकी रमणीयता के अनुभव से प्रजा आप से आप धर्म की ओर प्रवृत्त होती है। रामराज्य में- बयर न करु काहू सन कोई । राम प्रताप बिषमता खाई सब नर करहि परस्पर प्रीती । चलहिँ स्वधर्म-निरत श्रुति-रीती ॥ लोग जो वैर छोड़कर परस्पर प्रीति करने लगे, वह क्या राम के 'बाहुबल के प्रताप से', दंडभय से ? दंडभय से लोग इतना ही कर सकते हैं कि किसी को मारें-पोटें नहीं; यह नहीं कि किसी से मन में भी वैर न रखें, सबसे प्रीति रखें। सुशीलता की पराकाष्ठा राम के रूप में हृदयाकर्षिणी शक्ति होकर उनके बीच प्रतिष्ठित थी। उस शक्ति के सम्मुख प्रजा अपने हृदय की सुदर वृत्तियों को कर-स्वरूप समर्पित करती थी। केवल अर्जित वित्त के प्रदान द्वारा अर्थशक्ति खड़ी करने से समाज को धारण करनेवाली पूर्ण शक्ति का विकास नहीं हो सकता। भारतीय सभ्यता के बीच राजा धर्मशक्तिस्वरूप है, पारस और बाबुल के बादशाहों के समान केवल धनबल और बाहुबल की पराकाष्ठा मात्र नहीं। यहाँ राजा सेवक और सेना के होते हुए भी शरीर से अपने धर्म का पालन करता हुआ दिखाई पड़ता है। यदि प्रजा की पुकार संयोग से उसके कान में पड़ती है, तो वह आप ही रक्षा के लिये दौड़ता है; ज्ञानी महात्माओं को सामने देख सिंहासन छोड़कर खड़ा हो जाता है; प्रतिज्ञा के पालन के लिये शरीर पर अनेक कष्ट झेलता है; स्वदेश की रक्षा के लिये रण क्षेत्र में सबसे आगे दिखाई पड़ता है, प्रजा के सुख दुःख में