पृष्ठ:गोस्वामी तुलसीदास.djvu/३४

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. होती। गोस्वामी तुलसीदास पाया जिसने गुजरात आदि में वर्ग के वर्ग को वैदिक संस्कारों से एकदम विमुख कर दिया था, दक्षिण में शैवों और वैष्णवों का घोर द्वंद्व खड़ा किया था। यहाँ की किसी प्राचीन पुरी में शिवकांची और विष्णुकांची के समान दो अलग अलग बस्तियाँ होने की नौबत नहीं आई। यहाँ शैवों और वैष्णवों में मार-पीट कभी नहीं यह सब किसके प्रसाद से ? भक्तशिरोमणि गोस्वामी तुलसीदासजी के प्रसाद से। उनकी शांति-प्रदायिनी मनोहर वाणी के प्रभाव से जो सामंजस्य-बुद्धि जनता में आई, वह अब तक बनी है और जब तक रामचरितमानस का पठन-पाठन रहेगा, तब तक बनी रहेगी। शैवों और वैष्णवों के विरोध के परिहार का प्रयत्न रामचरित- मानस में स्थान स्थान पर लक्षित होता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के, गणेशखंड में शिव हरिमंत्र के जापक कहे गए हैं। उसके अनुसार उन्होंने शिव को राम का सबसे अधिकारी भक्त बनाया, पर साथ ही राम को शिव का उपासक बनाकर गोस्वामीजी ने दोनों का महत्त्व प्रतिपादित किया। राम के मुखारविद से उन्होंने स्पष्ट कहला दिया कि शिवद्रोही मम दास कहावै । सो नर सपनेहु मोहिन भावै वे कहते हैं कि 'शंकर-प्रिय, मम द्रोही, शिवद्रोही, मम दास" मुझे पसंद नहीं। इस प्रकार गोस्वामीजी ने उपासना या भक्ति का केवल कर्म और ज्ञान के साथ ही सामंजस्य स्थापित नहीं किया, बल्कि भिन्न भिन्न उपास्य देवों के कारण जो भेद दिखाई पड़ते थे. उनका भी एक में पर्यवसान किया। इसी एक बात से यह अनुमान हो सकता है कि उनका प्रभाव हिदू-समाज की रक्षा के लिये-उसके स्वरूप को रखने के लिये-कितने महत्त्व का था !

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