पृष्ठ:गोस्वामी तुलसीदास.djvu/१६२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१६२
गोस्वामी तुलसीदास


जिसमें हो, वह अलंकार नहीं*। अलंकार में रमणीयता होनी चाहिए। चमत्कार न कहकर रमणीयता हम इसलिये कहते हैं कि चमत्कार के अंतर्गत केवल भाव, रूप, गुण या क्रिया का उत्कर्ष ही नहीं, शब्द-कौतुक और अलंकार-सामग्री की विलक्षणता भी ली जाती है। जैसे, बादल के स्तूपाकार टुकड़े के ऊपर निकले हुए चंद्रमा को देख यदि कोई कहे कि "मानो ऊँट की पीठ पर घंटा रखा हुआ है। तो कुछ लोग अलंकार-सामग्री की इस विलक्षणता पर-कवि की इस दूर की सूझ पर—ही वाह वाह करने लगेंगे। पर इस उत्प्रेक्षा से ऊपर लिखे प्रयोजनों में से एक भी सिद्ध नहीं होता। बादल के ऊपर निकलते हुए चंद्रमा को देख हृदय में स्वभावत: सौंदर्य की भावना उठती है। पर ऊँट पर रखा हुआ घंटा कोई ऐसा सुंदर दृश्य नहीं जिसकी योजना से सौंदर्य के अनुभव में कुछ और वृद्धि हो। भावानुभव में वृद्धि करने के गुण का नाम ही अलंकार की रमणीयता है।

अब गोस्वामीजी के कुछ अलंकारों को हम इस क्रम से लेते हैं——(१) भावों की उत्कर्ष-व्यंजना में सहायक, (२) वस्तुओं के रूप ( सौंदर्य, भीषणत्व आदि ) का अनुभवतोब करने में सहायक, (३) गुण का अनुभव तीव्र करने में सहायक, (४) क्रिया का अनुभव तीव्र करने में सहायक।

(१) भावों की उत्कर्ष-व्यजना में सहायक अलंकार

अशोक के नीचे राम के विरह में सीता को चाँदनी धूप सी लगती है——

डहकु न है उँजियरिया निसि नहि घाम।
जगत जरत अस लागु मोहिं बिनु राम॥


* साधम्य कविसमयप्रसिद्ध कांतिमत्त्वादि न तु वस्तुत्वप्रमेयत्वादि ग्राह्यम्।

——विद्याधर।