पृष्ठ:गोस्वामी तुलसीदास.djvu/१५१

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बाह्य-दृश्य-चित्रण १५१ निकले हैं जिनके झुके हुए छोरों पर रक्ताभ कमल-दल छितराकर फैले इस प्रकार का कथन चित्रण का प्रयत्न कहा जायगा। यह चित्रण वस्तु और व्यापार के सूक्ष्म निरीक्षगा पर अवलंबित होता है। आदिकवि वाल्मीकि तथा कालिदास आदि प्राचीन कवियों में ऐसा निरीक्षण करानेवाली समग्र बाह्य सृष्टि से संयुक्त सहृदयता थी जो पिछले कवियों में बराबर कम होती गई और हिदी के कवियों के तो हिस्से ही में न आई। उन्होंने तो कुछ इनी गिनी वस्तुओं का नाम ले लिया. बस पुरानी रस्म अदा हो गई। फिर भी कहना पड़ता है कि यदि प्राचीन कवियों की थोड़ी बहुत छाया कहीं दिखाई पड़ती है. ते। तुलसीदासजी में। चित्रकूट, पंचवटी आदि स्थानों में गोस्वामीजी राम-लक्ष्मण को ले गए हैं; पर उनके राम-लक्ष्मण में प्रकृति के नाना रूपो और व्यापारों के प्रति वह हर्षोल्लास नहीं है जो वाल्मीकि के राम-लक्ष्मण में है। बाल्मीकि के लक्ष्मण पंचवटी पर जाकर हेमंत ऋतु की शोभा का अत्यंत विस्तीर्ण और सूक्ष्म वर्णन करते हैं. उसके एक एक ब्योरे पर ध्यान ले जाते हुए अपनी रागात्मिका वृत्ति का लोन करते हैं; पर गोस्वामीजी के लक्ष्मण बैठकर राम से 'ज्ञान, विराग. माया और भक्ति' की बात पूछते हैं। वाल्मीकि के लक्ष्मण तो जहाँ तक दृष्टि जाती है, वहाँ तक का एक एक व्योरा इस प्रकार आनंद से सामने ला रहे हैं- अवश्यायविपातेन किंचित्प्रक्लिन्नशाला। वनानां शोभते भूमिर्निविष्टतरुणातपा ।। स्पृशंस्तु विपुलं शीतमुदकं द्विरदः सुखम् । अत्यंततृषितो बन्यः प्रतिसंहरते करम् ॥ वाष्पसंछन्नसलिला रुतविज्ञेयसारसा। हिमाईवालुकैस्तीरैः सरिता भाति साम्प्रतम् ।