पृष्ठ:गोस्वामी तुलसीदास.djvu/१३८

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शील-निरूपण और चरित्र-चित्रण

. तत्र सकल शोल-निरूपण और चरित्र-चित्रण मुनि क कर दिया, वह एक तो शाप के भय से दूसरे उनकी अस्त्र-शिक्षा की आशा से । उस वृद्धावस्था में वे अपनी छोटो राली के वश में थे, यह उस वबराहट से प्रकट होता है जो उसका कोप सुनकर उन्हें हुई। वे उसके पास जाकर कहते हैं- अनहित नार प्रिया केइ कीन्हः । कहि दुइ सिर, केहि जम चइ लीन्हा ।। कहु केहि रंहि कर नरेलू । बहु केहि नृपहिं निकाउँ देसू ।। जानसि मोर सुभाः बरोरू ! मर आनन-चंद-चके रू॥ प्रिया ! प्रान, उत, सरबस मोरे। परिजन प्रता बस तोरे।। प्राण, पुत्र, परिजन, प्रजा सबको कैकयी के वश में कहना स्वयं राजा का कैकेयो के वश में होना अभिव्यंजित करता है। एक स्त्री के कहने से किसी मनुष्य को यमगज के यहाँ भेजने के लिये किसी दरिद्र को राजा बनाने के लिये किसी राजा को देश से निकालने के लिये तैयार होना स्त्रैश होने का ही परिचय देना है। कैकेयी के सामने जाने पर न्याय और विवेक थोड़ी देर के लिये विश्राम ले लेते थे। वाल्मीकिजी ने भी इसी प्रकार की बातें उस अवसर पर दशरथ से कहलाई हैं। दशरथ के हृदय की इस दुर्वलता के चित्र के भीतर प्रचलित दांपत्य-विधान का वह दोष भी झलकता है जिसके पूर्ण परिहार का पथ आगे चलकर मर्यादापुरुषोत्तम भगवान् रामचंद्र ने अपने आचरण द्वारा प्रदर्शित किया। आधी उम्र तक विवाह पर विवाह करते जाने का परिणाम अंत में एक एसा बे-मेल जोड़ा होता है जो सब मामलों का मेल विगाड़ देता है और जीवन किरकिरा हो जाता है। एक में तो प्रेम रहता है. दूसरे में म्वार्थ । अत: एक तो दूसरे के वश में हो जाता है और दूसरा उसकं वश के बाहर रहता है। एक तो प्रेम-वश दूसरे के सुख-संतोष के प्रयत्न में रहा करता है, दूसरा