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गोस्वामी तुलसीदास


अरब और फारस का भावात्मक रहस्यवाद लेकर जब सूफी हिदुस्तान में आए तब उन्हें यही रहस्योन्मुख संप्रदाय मिला। इसी से उन्होंने हठयोग की बातों का बड़ी उत्कंठा के साथ अपने संप्रदाय में समावेश किया। जायसी आदि सूफो कवियों की पुस्तकों में योग और रसायन की बहुत सी बातें बिखरी मिलती हैं। रहस्यवादी सूफियों के प्रेम-तत्व के नाय वेदांत कं ज्ञानमार्ग की कुछ बातें जोड़-कर जो निर्गुण पंथ चला उसमें भी 'इला, नारी" की बराबर चर्चा रही।

सूफियों ने हठयोगियों की जिन बातों को अपने मेल में देखा वे ये थी——

१——रहस्य की प्रवृत्ति।

२——ईश्वर को केवल मन के भीतर समझना और ढूँढ़ना।

३——बाहरी पूजा और उपासना का त्याग।

ये तीनों बातें भारतीय भक्ति-मार्ग से मेल खानेवाली नहीं थीं।

जैसा कि ऊपर दिखा आए हैं, भारतीय भक्ति-पद्धति 'रहस्य' की प्रवृत्ति को भक्ति की सच्ची भावना में बाधक समझती है। भारतीय परंपरा का भक्त अपने उपास्य को बाहर लोक के बीच प्रतिष्ठित करके देखता है, अपने हृदय के कोने में नहीं। वह ध्यान भी करता है तो जगत् के बीच अपनी प्रत्यक्ष कला का प्रकाश करते हुए व्यक्त ईश्वर का।तुलसी का वन के बीच राम का दर्शन करना प्रसिद्ध है," हृदय के भीसर नहीं।

इसी प्रकार भक्ति-भावना में लीन होने पर वह सब कुछ 'राम- मय' देखता है और अपने से बाहर सब की पूजा करना चाहता है। हठयोगियों की बातें भक्ति की सच्ची भावना में किस प्रकार बाधा पहुँचानेवाली थों इस बात को लोकदर्शी गोस्वामीजी की सूक्ष्म दृष्टि पहचान गई। उनके समय में गोरखपंथी साधु योग की रहस्यमयी