सातवाँ अध्याय ८१ श्यकता नहीं होगी, सिर्फ़ छायादार साफ जगह मिल जाय, तो बस है। जहाँ छायादार साफ़ जगह न हो, वहाँ बाँस और घास-फूस का काम-चलाऊ छप्पर तैयार करा लेना काफी होगा। इन दोनो चीज़ों का बाद में पूरा उपयोग हो सकता है। यह मान लिया है कि खाना गाँववाले ही खिलाएँगे। भोजन के लिये सीधा-सामान मिलने पर संघ के लोग अपने हाथ से रसोई बना लेंगे। पका-कच्चा जो भी हो, सादे-से-सादा होना चाहिए । रोटी, चपाती अथवा खिचड़ी, शाक और दूध या दही के सिवा और किसी चीज़ को जरूरत नहीं । पक्कान या मिठाई बनी भी होगी, तो उसका त्याग किया जायगा। शाक सिर्फ उबाला हुआ होना चाहिए। उसमें तेल, मसाला, मिर्च- लाल या हरी, पिसी हुई या सारी, कुछ भी न होगी। मैं चाहता हूँ कि सब जगह इसी तरह खाना तैयार किया जाय । सबेरे कूच करने से पहले राब और मोटी रोटी दी जाय । राब बनाने का काम हमेशा संघ के जिम्मे ही रहने दिया जाय। दोपहर को भाकरी, शाक और दूध या मट्ठा दिया जाय । साँझ को कूच करने से पहले चने और पौवे दिए जायें । रात को खिचड़ी, शाक तथा मट्ठा या दूध दिया जाय । घी फी आदमी सब मिलाकर तीन तोले से ज्यादा किसी हालत में न होना चाहिए । एक तोला राब में, एक तोला भाकरी पर ऊपर से, और एक तोला रात को खिचड़ी में । मेरे लिये सबेरे-शाम और दोपहर को बकरी का दूध, अगर मिल सके तो,
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