गोल-सभा करना आपको नामुमकिन मालूम होता हो, तो मुझे अपने पथ से लौटाने का प्रयत्न न कीजिएगा, यही प्रार्थना है। यह खत धमकी के लिये नहीं लिखा है, बल्कि सत्याग्रही के सरल और पवित्र धर्म का पालन करने के लिये लिखा है। इस- लिये मैं यह खत एक अँगरेज़ नौजवान के हाथों आप तक पहुँ- चाने का खास तरीका अख्तियार कर रहा हूँ। यह नौजवान भारत की लड़ाई को इंसाफ की लड़ाई मानते हैं। अहिसा में इन्हें पूरी श्रद्धा है, और मानो ईश्वर ने इस खत के लिये ही इन्हें मेरे पास मेज दिया हो, इस तरह ये मेरे पास आ पहुँचे हैं। इति । आपका सच्चा मित्र-- मोहनदास-कर्मचंद गांधी इस पत्र के वाइसराय के पास पहुँचने के बाद ३६ घंटे तक उनके तार की राह महात्माजी ने देखी, और कोई भी जवाब न आने से गुरुवार ता०६ मार्च, १९३१ को प्रातःकाल इस पत्र को प्रकाशित करने की अनुमति दे दी, और युद्ध-यात्रा की तैयारी करने लगे। परंतु इसके बाद ही वाइसराय का उत्तर डाक द्वारा उन्हें मिल गया। वह वाइसराय के सेक्रेटरी का लिखा हुआ था। उसका मजमून यह था- प्रिय मि० गांधी, आपका २ मार्च का पत्र वाइसराय साहब को मिला है। उन्हें यह जानकर दुःख हुआ है कि आप ऐसा काम शुरू करना
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