छठा अध्याय आप नहीं ढूंढ निकालेंगे, और मेरे इस खत का आप पर कोई असर न होगा, तो इस महीने की ग्यारहवीं तारीख को मैं अपने आश्रम के जितने साथियों को ले जा सकूँगा, उतने साथियों के साथ नमक-संबंधी कानून तोड़ने के लिये कदम बढ़ाऊँगा। गरीबों के दृष्टि-बिंदु से यह कानून मुझे सबसे ज्यादा अन्याय-पूर्ण मालूम हुआ है। आजादी की यह लड़ाई खास- कर देश के गरीब-से-गरीब लोगों के लिये है। अतः यह लड़ाई इस अन्याय के विरोध से ही शुरू की जायगी। आश्चर्य तो यह है कि हम इतने सालों तक इस दुष्ट एकाधिकार को मानते रहे । मैं जानता हूँ कि मुझे गिरफ्तार करके मेरी योजना को निष्फल बना देना आपके हाथ में है। परंतु मुझे उम्मीद है कि मेरे बाद लाखों आदमी संगठित होकर इस काम को उठा लेंगे, और नमक-कर का जो कानून कभी बनना ही न चाहिए था। उसे तोड़कर कानून की रू से होनेवाली सजा को भोगने के लिये तैयार रहेंगे। अगर संभव होता, तो मैं आपको फिजूल ही-या जरा भी- धर्म-संकट में डालना नहीं चाहता । यदि आपको मेरे पत्र में कोई तत्त्व की बात मालूम हो, और मुझसे वार्तालाप करने लायक महत्त्व आप उसे देना चाहें, और इसलिये इस खत को छापने से रोकना पसंद करें, तो इस खत के मिलते ही बजरिए तार मुझे इत्तिला दीजिएगा । मै खुशी से इसे छापना मुलतवी रख दूंगा। किंतु अगर मेरे पत्र की खास-खास बातों को मंजूर
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