छठा अध्याय ६३ और अपना पैग़ाम लिखने में लगे । एक और दो मार्च को उन्होंने यह पैग़ाम लिखकर देश के प्रमुख कांग्रेस नेताओं से सलाह की, और उसे तैयार कर लिया। इसे वायसराय के पास ले जाने के लिये मि० रेजीनल्ड रेनाल्ड्स, जो उन दिनो, साबरमती. आश्रम में ऑक्टोबर मास से रह रहे थे, चुने गए । यह २४ वर्ष के नवयुवक थे । आश्रम में रविवार २ मार्च, सन् ३० को शाम के ५३ बजे ईश्वर-प्रार्थना की गई, और महात्माजी ने अपनी उस लिखित चेतावनी का बंद लिफाफा मि० रेजीनल्ड रेनाल्ड्स के हाथों में वायसराय तक पहुँचाने के लिये सौंप दिया। यह अँगरेज़ युवक दूत उसे लेकर रात की डाकगाड़ी से दिल्ली के लिये रवाना हुए । ४ मार्च को सबेरे हो वायसराय के स्थान पर जाकर मि० रेजीनल्ड रेनाल्डस ने बंद लिफाफा वायसराय के प्राइवेट सेक्रेटरी मि० कनिंघम को सौंप दिया, और रसीद ले ली। इस समय यह खादी की कमीज़ और कोट तथा गांधी-टोपी पहने हुए थे। वह उसो दिन शाम की गाड़ी से साबरमती वापस लौट गए, और पत्र की रसीद महात्माजी के हवाले को। अहिंसात्मक युद्ध के सेनापति महात्मा गांधी की वह चेतावनी यह थी- सत्याग्रह-आश्रम, साबरमती २ मार्च, १९३० प्रिय मित्र, निवेदन है कि इसके पहले कि मैं सविनय कानून-भंग शुरू करूँ, और शुरू करने पर जिस जोखम को उठाने के लिये
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