पाँचवा अध्याय घोषणा करने से पहले ही मैं आपसे मिला । मैंने उसी समय आपसे कह दिया था कि इस घोषणा से कांग्रेसवाले दुविधा में पड़ जायँगे, क्योंकि इसे स्वीकार करके वे अपने कलकत्ता- कांग्रेस के प्रस्ताव तथा समय-समय पर की हुई घोषणाओं के खिलाफ चलेंगे। ओर, यदि वे इसे अस्वीकार करेंगे, तो अन्य राजनीतिक पार्टियाँ साथ छोड़ देंगी। मैं स्वयं निजू तौर पर गोल-सभा के हक़ में था। इसलिये नहीं कि मुझे इससे कोई बड़ी उम्मीदें थीं, बल्कि इसलिये कि यदि यह सफल न हुई, तो कांग्रेस को और भी व्यापक आंदोलन करने का मौका मिल सकेगा। साथ ही मुझे आपकी सचाई पर भी विश्वास था। मैंने यह बात आन तक प्रकट करने में कोई कसर उठा नहीं रक्खी कि यदि इस गोल सभा में कांग्रेस पार्टी न गई, तो. वह किसी मतलब की न होगी। इसलिये लाहोर-कांग्रेस से पहले ही मैंने आप पर जोर देकर महात्माजी तथा पं० नेहरूजी से मुलाकात कराई। मुलाकात हुई, पर व्यर्थ गई। क्योंकि महात्माजी की शर्त स्वीकार नहीं की गई। मैंने उस समय समझा था कि महात्माजी कुछ गलती कर रहे हैं, पर पोछे से इंगलैंड में अर्ल रसेल आदि को स्पीचें, जगह-जगह चलाए गए मुकद्दमे और एसेंबली में आपकी की हुई घोषणा तथा अंत में इंपीरियल प्रिफरेंस के संबंध में सर- कारी नीति को देखकर मेरे विचार बदल गए, और मैंने समझा. पर
पृष्ठ:गोल-सभा.djvu/६९
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।