गोल-सभा करने के बाद मैंने समझा कि आप भारत का भला करेंगे। मैं चाहता था कि आपका प्रयत्न सफल हो । २५ मई, २६ को जब आप इंगलैंड जाने के लिये शिमला छोड़ने लगे, तो मैंने आपको सलाह दी थी कि अच्छा हो, यदि आप महात्मा गांधो तथा पं० मोतीलालजी से मिल लें, और निश्चय कर लें कि किस प्रकार की घोषणा से कांग्रेस को संतोष होगा ।पर आपने अपनी प्रतिष्ठा के खयाल से कांग्रेस तथा महात्माजी के प्रभाव को समझने से इनकार कर दिया। जब आप इंगलैंड में थे, मैंने आपको दो पत्र लिखे, और दोनो का ही उत्तर आपने दिया। एक पत्र में मैंने आपसे कहा था कि यदि किसी ढंग से कांग्रेसवाले गोल-सभा में भाग लेना स्वीकार कर लें, तो आधी लड़ाई खत्म होती है । दूसरे पत्र में भो मैंने यही कहा कि दुर्भाग्य से आपने देश की मुख्य राज- नीतिक पार्टी के लोगों से सलाह-मशवरा नहीं किया । यदि मज़दूर-दल इस दल के मुख्य नेताओं, महात्माजी तथा नेहरूजी, में से एक को या दोनो को विश्वास में ले सके, तो अच्छा हो। सरकार अपने दबदबे का खयाल इस मामले में छोड़ दे। आपने अपने पत्रों में विश्वास दिलाया कि आप पूर्ण कोशिश करेंगे कि सब विचारों के लोगों को संतोष प्राप्त हो। आप नवंबर के अंत में यहाँ लौट आए, और आपने अपनो घोषणा की। इस घोषणा की कापी आपने मेरे पास पहले ही भेजने की कृपा कर दी थी। आपके यहां आने पर
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