पाचवा अध्याय अध्यक्ष पटेल के दो महत्त्वपूर्ण पत्र ये पत्र व्यवस्थापिका सभा के अध्यक्ष श्रीपटेल ने अपने पद- त्याग करने के समय लिखे थे- प्रथम पत्र २८ एप्रिल, ३० प्रिय लॉर्ड इविन, मैंने सन् १९२५ के अगस्त मास से लेकर अब तक सभापति के लिये उचित पक्षपात-शून्य तथा स्वतंत्र नीति का अनुसरण किया है। मुझे अपने सिद्धांतों पर दृढ़ रहने के अपराध पर नौकर- शाही के क्रोध का पात्र भी बनना पड़ा । मैंने सरकार को स्पष्ट रूप से बतला दिया कि न तो मैं शासन-चक्र का एक अंग हो हूँ, और न मैं किसी भी विषय में आपकी अधीनता स्वीकार कर सकता हूँ, चाहे वह विषय आपकी सम्मति में कितना ही महत्त्व क्यों न रखता हो। गत तीन वर्षों से सरकार मुझे भयभीत और तंग करने पर तुली हुई है, यहाँ तक कि मेरे सामाजिक बहिष्कार का प्रयत्न भी किया गया। सभापति को निष्पक्षपातिता पर उसी दल ने सब प्रकार के अनुचित आक्षेप, अनुचित भाषा में, प्रेस तथा अन्य साधनों से किए। मेरी प्रत्येक चेष्टा पर कड़ी नज़र रक्खी
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