गोल-सभा वाला हो, उस प्रांत की कांग्रेस-कमेटी, यदि उचित और श्राव- श्यक समझे, तो कांग्रेस का अधिवेशन फरवरी या मार्च के महीने में करा सकती है। इस प्रस्ताव पर बहुत देर तक वाद- विवाद होता रहा। अंत में वोट लेने पर ७५४-४२६ वोटों से प्रस्ताव स्वीकृत हो गया। (४) यह कांग्रेस समझती है कि विदेशी शासन होने के कारण प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष भाव से भारत पर जिन ऋणों का भार लादा जा रहा है, उन ऋणों के लिये स्वाधीन भारत उत्तर- दायी न होगा। सन् १९२२ ई० की कांग्रेस में इस प्रकार का जो प्रस्ताव पास हुआ था, इस बार की कांग्रेस उसका अनुमोदन करती है, और जिन्हें यह बात जानने की आवश्यकता हो, उनके लिये घोषित करती है कि स्वाधीन भारत उत्तराधिकारी को हैसियत से जिन सुविधाओं एवं उत्तर दायित्वों को प्राप्त करेगा, उन पर विचार करने के लिये एक निरपेक्ष मंडली पर भार दिया जायगा, और वह जिन बातों को मानने योग्य न सम- झगी, भारत उन्हें स्वीकार करने के लिये बाध्य नहीं रहेगा। यह प्रस्ताव भी सभापति महोदय द्वारा उपस्थित किया गया था, और विना किसी वाद-विवाद के सर्व-सम्मति से स्वीकृत हो गया। (५) देशी रजवाड़ों के अधिवासो प्रजाजनों ने पूर्ण स्वाधी- नता के लिये अपने को तैयार बताया है। उनके अभाव-अभि- योगों के लिये भी एक प्रस्ताव रक्खा गया, जो स्वीकृत हो गया।
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