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४० गोल-सभा परिणाम की परवा न करके विदेशियों को हुकूमत के विरोध में या तो अपना जीवन दे डाला है, और या जिनकी जोश-भरी जवानी जुल्म सहते बीती है । वे वीर भले ही आज न हों, पर उनका साहस तो आज भी बना है । जतीन और विजय-जैसे पुत्र आज भी भारत पैदा कर सकता है। अब योरप के प्रभुत्व के दिन गए । ये अमेरिका और एशिया के उत्थान के दिन हैं। विश्व-क्रांति की लहर से भारत अछूता नहीं बच सकता। "भारतीय समाज भिन्न-भिन्न संस्कृतियों का उच्छेद नहीं, बल्कि समानता देता रहा है। मुसलमानों के आने से इस व्यवस्था में गड़बड़ हुई थो। पर बहुत-सी व्यवस्था ठोक हो गई थी। तभी अँगरेजों ने अवसर पाकर अपना मतलब गाँठ लिया। "दुःख है कि आज भारत में धर्म-सहिष्ण ता नहीं । योरप धर्म-स्वतंत्रता प्राप्त कर राजनीतिक और उसके बाद आर्थिक स्वाधीनता प्राप्त को, और वह अब समाज-स्वाधीनता पर विचार कर रहा है। "भारत को भी इसके लिये कोई उपाय ढूंढ निकालना पड़ेगा। वरना देश का ढाँचा ठीक न बनेगा। पर इसके लिये हमें अपनी प्रकृति और संस्कृति के अनुरूप ही चेष्टा करनी पड़ेगी। V"भय, अविश्वास और संदेह हममें जो बने हैं, वे वैमनस्य का बीज हैं । हम मतभेद दूर करना नहीं चाहते, परस्पर के भय और संदेह को दूर करना चाहते हैं। खेद है, इस संबंध में सर्वदल-कमेटी को सफलता नहीं मिली। समाज में अनुपात