चौथा अध्याय ३६ अमृतसर-कांग्रेस में बता दिया कि अब हम शांति से अंगरेजों के नीचे नहीं बैठे रहेंगे। "महात्मा गांधी ने असहयोग-युद्ध छेड़ा; परंतु देश की कम- जोरी ने उसे विफल किया । शक्ति बिखर गई। अंत में हिंदू- मुसलिम-वैमनस्य ने सब कुछ नष्ट कर दिया। सरकार की मन- चेती हुई । आपस में फूट डालकर शासन करने की उसकी पुरानी नोति है। "अब एक जबर्दस्त प्रोग्राम सामने रखने की आवश्यकता है, जिसे पूरा करने में हम आपसी द्वष भूल जायँ । जनता भूखी है, वह आँसू बहा रही है । पर किसान और मजदूर ही भारत के भावो मालिक हैं । सांप्रदायिकता को नष्ट कर दो। कोई संप्रदाय खतरे में नहीं है। "महात्माजी हमारे नेता, बनें और युवक उनका अनुसरण करें, यही मेरी प्रार्थना है। "पं. जवाहरलालजी और मैं केंब्रिज-युनिवर्सिटी के सहपाठी हैं। मैं इनका आज हृदय से स्वागत करता हूँ।" इसके बाद आपने हार पहनाकर जवाहरलालजी से सभापति का आसन ग्रहण करने को प्रार्थना की, और उन्होंने प्रचंड तालियों की गड़गड़ाहट के बीच अपना भाषण हिंदी-भाषा में देना शुरू किया । यह भाषण एक घंटे से अधिक तक होता रहा । उसका सारांश इस प्रकार है- "हम अपने उन भाइयों और बहनों को नहीं भूल सकते,जिन्होंने
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