चौथा अध्याय ३५ जब तक मालवीयजी बोलते रहे, लोग उनका मजाक उड़ाते रहे । केलकर ने उनका समर्थन किया। बंगाल के ज्वलंत युवक सुभाष बाबू ने बड़ी जोरदार स्पीच दी। आपने कहा- "इस प्रस्ताव में इस प्रकार के संशोधन होने चाहिए, जिनसे पूर्ण स्वाधीनता का यह अर्थ स्पष्ट हो जाय कि हमें ब्रिटिश- सामाज्य से कोई सरोकार ही नहीं है। कांग्रेस किसानों, मज- दूरों और युवकों का संगठन करे। व्यवस्थापिका सभाएँ, स्थानिक संस्थाएँ और अदालतें त्याग दी जायँ ।" इसी प्रकार के और भी बहुत-से संशोधन पेश हुए । २६ तारीख को फिर मूल-प्रस्ताव पर बहस हुई । श्रीसत्यमूर्ति ने इस दिन कौंसिल-बहिष्कार के विरुद्ध वक्तव्य दिया । अंत में महात्मा गांधी ने सबको उत्तर देते हुए कहा- "हमें वर्किंग कमेटी के प्रस्ताव पर विश्वास रखना चाहिए। यह ठीक है कि हम औपनिवेशिक स्वराज्य की बात नहीं सुन सकते ; पर हम स्वतंत्रता की बात सुनने को तो किसी के भी साथ बैठ सकते हैं। मालवीयजी आदि ने सर्वदल-सम्मेलन की बात उठाई है । यह सच है कि उससे हमारी एकता में बहुत सहायता मिलेगी। पर जब औपनिवेशिक स्वराज्य हमें मिल हो नहीं रहा है, तो उसकी प्रतीक्षा कब तक ? नर्मदलवाले हमसे नहीं मिल सकते, तो जाने दोजिए। हमें कलकत्ते के निर्णय के अनुसार पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव पास करना चाहिए।"
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