२४ गोल-सभा एकमत से उठ खड़ो हो, तो कैसी विपद् उठ खड़ी हो सकती है, यह वह समझे हुए थे। सन् १८२२ में उन्होंने नौकरी छोड़ी, और शिमले में रहने लगे। आपने लॉर्ड लिटन का कठोर शासन और उसके बाद लॉर्ड रिपन का शांत प्रोग्राम देखा था। वह गोरों के जोश और देश के असंतोष पर गंभीर विचार करने लगे। उन्होंने सोचा, वैध आंदोलन का मार्ग खोलकर यह असं- तोष रोका जा सकता है। यह विचारकर इन्होंने सन् १८८४ में एक इंडियन नेशनल यूनियन की स्थापना की । इसने १८८५ में, दिसंबर में, देश-भर के प्रतिनिधियों को एकत्र करने की तैयारी की। भारत के मध्य भाग में होने के कारण इसके लिये पूना स्थान नियत किया गया । उद्देश्य था राष्ट्रीय उन्नति तथा आगामी वर्ष के लिये राजनीतिक कार्य। चिपलूणकर स्वागतकारिणो के सभापति बने । ह्यूम साहब का विचार इस सभा के द्वारा केवल सामाजिक विषयों पर विचार करना था। पर तत्कालीन वायसराय लॉर्ड डफरिन ने उन्हें राजनीतिक सभा बनाने की सलाह दो । लॉर्ड डफरिन ने उनसे कहा-शासन-सूत्रधार को हैसियत से मुझे लोगों को वास्तविक इच्छा जानने में बड़ी कठिनाई पड़ती है। यदि कोई ऐसी जिम्मेदार संस्था हो, जिससे सरकार को देश की इच्छा का पता चलता रहे, तो बड़ी सुविधा हो । १८८५ में, शिमले में, मम साहब और वायसराय से इस संबंध में बातचीत भी हुई। उसमें वायसराय ने कहा कि इसमें प्रांत के गवर्नर की यह भी
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