२२ गोल-समा की परीक्षा के लिये २१ के बजाय १६ वर्ष की आयु की कैद कर दी थी। इस विषय को लेकर उक्त एसोसिएशन ने विरोध में घोर आंदोलन किया । इसके लिये सुरेंद्रनाथजी ने काशो से रावल- पिंडी तक और फिर तमाम दक्षिण का दौरा किया। बड़े-बड़े शहरों में आपने भाषण दिए । अलीगढ़ में सर सैयद अहमद सभापति बने । दक्षिण के काशीनाथ त्र्यंबक तैलंग, महादेव- गोविंद रानाडे इस आंदोलन में आपके साथी हुए। अंत में श्रीलालमोहन घोष इंगलैंड की कामंस सभा में इसी उद्देश्य से भेजे गए । अंत को सिविल सर्विम-संबंधी नियमों में आवश्यक सुधार कर दिए गए। १८७७ में, दिल्ली में, महारानी विक्टोरिया का दर्बार हुआ। वहाँ बड़े-बड़े राजे और विद्वान् आए । सुरेंद्रनाथजी हिंदू-पेट्रि- एट के तौर पर उसे देखने गए। उन दिनों देश में भारी अकाल पड़ रहा था । पर वहाँ की फ़िजलखर्ची और ठाट देखकर वह विचलित हुए । देश को सार्वजनिक शक्ति को एकत्र करने के विचार इसी समय उनमें उत्पन्न हुए। सन् १८८० में लार्ड रिपन गवर्नर जनरल होकर आए। प्रधान मंत्री ग्लेडस्टन ने भारत की अशांति देखकर ही उन्हें भेजा था। इन्होंने अफगानिस्तान से संधि की, और वैज्ञानिक सीमा-प्रांत की अपेक्षा प्रजा की शांति को अधिक संतोष-जनक समझा। इन्होंने १८७८ के देशी अखबारों के नियंत्रण-संबंधी कानूनों को रद कर दिया। जिला-बोर्ड और म्युनिसिपैलिटियाँ कायम की।
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