गोल-सभा भीतर क्रोध तथा असंतोष का संचय हो रहा था । इसी समय ब्रिटेन की सत्ता ने उस उदीयमान नई भावना को दमन करने की चेष्टा की । इससे असंतोष ने तीन भावना को ग्रहण कर लिया । श्राज देश में सब धर्म-वचनों, सब आह्लाद-वाक्यों, सब मंतव्यों के ऊपर 'वंदे मातरम्' और 'क्रांति की जय' का स्वर ही सुन पड़ता है। पूर्ण स्वाधीनता देश को राजनीतिक चेष्टा की चरम सीमा है,. और आज भारत ने उसे ही अपना ध्येय बना लिया है। देश की इस राजनीतिक अशांति के उद्गाता तीन महापुरुष हैं, जिन्होंने इस आकांक्षा को देश की आत्मा में एकत्र किया। वे हैं दादाभाई नौरोजो, गोपालकृष्ण गोखले और लोकमान्य तिलक । इन तीनो महात्माओं के जीवन इस नवीन जीवन के अंकुर बाने और देश में सार्वभौम क्षेत्र तैयार करने में व्यतीत हुए । अंत में लोकमान्य तिलक ने अपने उस युग को आकांक्षा की एक रेखा बनाई, और वह रेखा थो-"स्वराज्य हमारा जन्म- सिद्ध अधिकार है।" यह वाक्य एक बार देश-भर के वातावरण में सर्वोपरि रहा था। कलकत्ते की कांग्रेस में ही यह बात प्रकट हो गई थी कि देश का वातावरण बहुत गर्म हो गया है। इसके बाद ही देश का आंदोलन और ही रूप पकड़ गया। तिलक की नीति अब पुरानी हो गई, और महात्मा गांधी ने अपना असहयोग-सिद्धांत प्रच- लित किया। उसमें एक भयानक आग थी, परंतु एक प्रबल
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