तोसरा अध्याय राजनीतिक अशांति गत ४० वर्ष से ऐसा प्रतीत होता है कि अंधकार में डूबा हुआ भारतीय भीतर-ही-भीतर एक नया जीवन प्राप्त कर रहा है। इस बीच में अनेक प्रतिभा-संपन्न आत्माओं ने राष्ट्री- यता की चिनगारी को सुलगाकर एक बड़ा अंगार बना दिया है, जिसने प्रांतीयता, धामिक कट्टरता और जातीय स्वार्थों को छिन्न- भिन्न करके राष्ट्रीय जीवन उत्पन्न कर दिया है। देश के विषम विपत्ति-काल में इन आत्माओं ने अपनी शक्ति और प्रतिभा का अमूल्य दान देश को दिया। उन्हीं के इस अमूल्य दान से नवीन जातीयता के बीज उगते हम देख रहे हैं। यह नवीन जातीयता साहसी, तेजस्वी, उच्चाशय, उदार, स्वार्थ-रहित, परोपकारी और देश-हित-साधन के लिये उच्चाकांक्षाओं से परिपूर्ण है। देश- भर मैं वृद्ध और युवकों में एक अद्भ त अनेक्य जो हम देख रहे हैं, वह इसी जातीयता के उत्थान का कारण है । मालूम होता है, भारत के कलियुग का अंधकारमय युग समाप्त हो रहा है। और देश का तरुण मंडल अग्नि-स्फुलिंग के समान पुराने झोपड़े को ढहाकर नवीन महल का निर्माण किया चाहता है। इस नवीन संतति ने जिस कार्य को प्रारंभ किया है, उसे विना पूर्ण किए
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