WO h २१० गोल-सभा चाहते, मगर हम केवल उस शर्त के साथ, जो कि सर चिमनलाल शीतलवाड ने अभी रक्खी है, छोड़ने को तैयार हैं। वह शर्त यह है कि मुसलमानों को, जिन प्रांतों में वे अल्प-संख्या में हैं। उनके आबादी के अनुपात से अधिक प्रतिनिधित्व मिले। यह अधिकता वर्तमान समय की व्यवस्था के अनुसार ही हो, और किसी भी उम्मीदवार के निर्वाचन के लिये उसको अपने संप्रदाय से ४० प्रतिशत तथा विभिन्न संप्रदाय में ५ प्रतिशत वोट प्राप्त करना आवश्यक हो। इसके अलावा मुसलमानों को पंजाब और बंगाल में श्राबादी के अनुपात से प्रतिनिधित्व मिल जाय । सर मुहम्मद शमी ने कहा कि ये माँगें न्यूनतम हैं। डॉ० मुंजे ने मुसलिम-प्रतिनिधियों की मांगों के जवाब में हिंदू महासभा की ओर से इस आशय का बयान पेश किया- (१) हिंदू महासभा पृथक् प्रतिनिधित्व को उसूलन खराब समझती है। उसका विश्वास है कि किसी भी उत्तरदायी शासन में पृथक् प्रतिनिधित्व को स्थान नहीं मिल सकता । सभा की सम्मति में भारत के भावी शासन की नींव रखते हुए निम्न- लिखित मूल-भूत सिद्धांतों को ध्यान में रखना चाहिए- क-प्रत्येक प्रांत में, प्रत्येक संप्रदाय के लिये, एक-सदृश मताधिकार की व्यवस्था हो । ख-प्रत्येक निर्वाचित संस्था का निर्वाचन मिश्रित प्रति- निधित्व के सिद्धांत से हो। ग-किसी भी शिक्षण व प्रतिनिध्यात्मक संस्था के चुनाव
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