२०२ गोल-सभा उन्हें यह विश्वास हो गया है कि इसी प्रकार से वे शासन को सुरक्षित और स्थायी बना सकते और सम्राट्, साम्राज्य और देश की सेवा भी कर सकते हैं। हमारे ब्रिटिश भारत के सहयोगी भी केवल ब्रिटिश भारत के लिये आदर्श शासन-प्रणाली की रचना का विचार त्यागकर विराट् भारत का भाग्य निर्माण करने के लिये तैयार हो गए हैं, परंतु हमसे कहा जाता है कि यदि हम अपने उद्देश्य की प्राप्ति में सफल हो जाय, तो भारत पर कुछ जंगली लोग शासन करने लगेंगे, जो उसका कर्ज अदा करने से इनकार कर देंगे, फौजी हुकूमत द्वारा देश-भर में श्रा- तंक फैला देंगे और इस प्रकार भारत में चीन-जैसे गृह-युद्ध का श्रीगणेश कर देंगे। मेरी समझ में नहीं आता कि कान्फ्रेंस में उपस्थित विद्वान् प्रतिनिधि कैसे कोई प्रणाली की रचना कर सकते हैं, जिसके कारण साम्राज्य का ध्वंस हो जाय । संभव है, ब्रिटिश-व्यापार को आघात पहुंचे, और उसका भारत के साथ संबंध क्षीण हो जाय । परंतु हरएक देश का अस्तित्व और वैभव जितना आंतरिक व्यापार पर निर्भर रहता है, उतना बाह्य व्यापार पर नहीं । यदि भारतीय क़र्ज़ अदा करने से इनकार कर दें तो इसमें भी उन्हीं की क्षति होगी। उनके ऊपर अधिकांश में आंतरिक कर्ज और ब्रिटिश-कर्ज का बोझ है । और सचमुच में जिस समय हमारा सर्वस्व निछावर हो रहा होगा, उस समय हमारी बुद्धि और राजनीतिक योग्यता हमसे बिल्कुल कूच न कर जायगी। क्या यह बात तर्क-युक्त
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