१२ गोल-सभा अपनी तमाम शक्ति से अत्यंत प्राचीनता की ओर आकृष्ट है। यह कैसे हो सकता है कि वह एशिया में स्वेच्छाचारी रहे, और आस्ट्रोलिया में प्रजासत्तावाद का समर्थक । पश्चिम में स्वायत्त- शासन का प्रशंसक रहे, और पूर्व में मुस्लिम अंधविश्वासों और मंदिरों का संरक्षक। परंतु यदि ध्यान से देखा जाय, तो राजनीतिक प्रभुत्व की अपेक्षा इंगलैंड का भारत पर आर्थिक प्रभुत्व ही अधिक महत्त्व- पूर्ण है। यह बात भी सच है कि अंगरेजों ने प्रारंभ में भारत पर राजनीतिक प्रभुत्व की बात भी न सोची थी, वह तो घटना- क्रम से आप ही होता चला गया। सर जॉन सीली ने कहा है कि जब हम अमेरिका के युद्ध में अपनी भारी अयोग्यता दिखाकर ३० लाख मनुष्यों के प्रदेश को खो बैठे थे, और युद्धों में भी फंसे थे, एवं कुल अंगरेज १ करोड २० लाख थे, तब कैसे भारत के दुर्दमनीय विजेता बन बैठे ! जब लाइव लासो और दक्खिन में युद्ध कर रहा था, तब अमेरिका में सात वर्ष का युद्ध चल रहा था, और जब नेपोलियन से इंगलैंड थर्रा रहा था, तब लॉर्ड वेल्जली बहुत-सी भूमि अंगरेजी राज्य में मिला रहा था !! योरप में हम जल-युद्ध हो करते थे, और स्थल-युद्ध के लिये किसी मित्र सैनिकराज्य से किराए पर सेना लेते थे। फिर भी हम १० लाख वर्ग-मील का देश जीत गए ! १६वीं शताब्दि तक लगभग आधी एशिया पोर्तुगीजों के अधीन थी। इसी शताब्दि के अंत में डचों ने सफलता प्राप्त
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