११८ गोल-सभा शासित करने का निश्चय साफ तौर से स्थिर कर लिया जाय, तो कुछ ही वर्षों के अंदर-अंदर, बल्कि महीनों में ही यह विश्वास- पर-विश्वास दिलाने का संकटमय समय खत्म हो सकता है। इमारी स्थिति कहाँ है? "कहिए, हम किस जगह खड़े हैं ? सम्राट की बात अचल है। हम सिर्फ भारत के लाभ और शुभचिंतना के लिये परिश्रम करने के ही अधिकारी नहीं, बल्कि भारत की प्रत्येक जाति और फिरके के साथ मिलकर उनकी उन्नति कराने के भी हम अधि- कारी हैं। "१९२० का ऐक्ट एक ऐसी शिला है, जो हटाई नहीं जा सकती। उस ऐक्ट के द्वारा हम भारत के राजनीतिक दलों के ऊपर, नई-नई राजकीय शक्तियों का विचार करते हैं और हम इस बात के जिम्मेदार हैं कि उन नई शक्तियों का उपयोग ईमानदारी और सिलसिले से करें। साम्राज्य के भीतर भारतीय राज- व्यवस्था के विस्तार की सीमा का कोई लिखित सिद्धांत हमारा नहीं है। लेकिन उसी ऐक्ट के द्वारा हमें बराबर का यह अधि- कार प्राप्त है कि हम उन शक्तियों का मनचाहा उपयोग करें। "जो जाति बल-पूर्वक विगत काल में विजय की गई हो, वह यदि उस विजयी जाति की आधुनिक पार्लियामेंट से, जो आज उसकी हित-कामना रखती है, यदि वचन-बद्ध करना चाहे, तो यह तो एक ठेका हुअा, ऐसा कहना चाहिए । "इन हालतों में एक नई पार्लियामेंट को यह निश्चय करना
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