१६७ पंद्रहवां अध्याय में बंद हैं। कानून-भंग-आंदोलन सर्वत्र दबा दिया गया है। गांधी- आंदोलन, जिसने भारत सरकार से मोर्चा लिया, अब ठंडा है। और मैं ईश्वर को धन्यवाद देता हूँ कि इसमें न कहीं खून- खराबी हुई और न अँगरेजी फौजों को (सिवा पश्चिमी सर- हद के) ही कहीं हस्तक्षेप करना पड़ा। "मैं अँगरेज़ जाति को आमंत्रित करता हूँ कि वह अपनी सफल शक्ति को पहचाने, जिसने भारत पर बुद्धिमत्ता पूर्ण सुंदर शासन किया है। उसी शक्ति को अंत समय तक काम में लाना चाहिए। यह लज्जा की बात है कि हमारा नैतिक और ज्ञान-युक्त आदर्श उतना स्पष्ट नहीं है, जितना हमारी सामग्रिक सत्ता। 'यदि शीघ्र ही औपनिवेशिक राज्य की निरंतर प्राशाओं को जाग्रत् करने की अपेक्षा हम भारत की सामग्रिक अवस्था को उन्नत करने में एकचित्त होकर क्रियात्मक काम करते ; यदि लाहौर-कांग्रेस को, जिसने यूनियन जैक का हास्यास्पद अपमान किया, पहले से ही छिन्न-भिन्न कर दिया जाता और उसके नेता निर्वासित कर दिए जाते ; यदि गांधी को गिरफ्तार करके, कानून-भंग से पहले ही सज़ा दे दी जाती ; यदि हमें शासन करने का दृढ़ विश्वास और इच्छा होती, ता आज उपस्थित संकटों को उठाने का अवसर ही न आता। "मैं इंगलैंड-वासियों से, जो भारत से वास्तव में परिचित हैं, फिर अपील करता हूँ कि वे भारत से डिगें नहीं। अब भी किसी भी समय पार्लियामेंट का भारतीय प्रजा को राज-भक्ति-सहित
पृष्ठ:गोल-सभा.djvu/२१५
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।