पंद्रहवां अध्याय १६५ "हमारे ये पराजित राजनीतिज्ञ देशी राजों के बदले हुए भावों को सहज ही में लक्ष्य कर लेते हैं। ये नरेश अब तक हमारे विश्वासी मित्र हैं, जो हमसे संधि कर-करके मिले हैं। हमें बताया गया है कि इस वर्तमान आंदोलन में ये लोग भी सम्मिलित हैं, परंतु निश्चय ही समस्या सरल है । "एक बार यह निश्चय कर लिया गया कि इस ब्रिटिश- सत्ता के बाद कोई नई वस्तु आनेवाली है, और यह बड़ी शक्ति, जिसने समस्त भारत पर एकच्छत्र राज्य किया और जिसने उसे सब प्रकार की हानियों से बचाया, अब स्वाभाविक तया अलग होनेवाली है, फिर भी इसके अनन्य राज्य-भक्त अनु- यायी एक नई स्थिति का विचार करें, और एक नई प्रणाली के लिये तैयार हों। नए संबंध "अगर ब्रिटिश राज्य के बदले गांधी-राज्य हो जाय, तो देशी राजों को इस नवीन राज्य-सत्ता से उतनी ही दृढ़तापूर्वक संबंध गाँठने के लिये तैयार होना पड़ेगा, जितनी कि पहली से। मुसलमानों के विषय में भी यही बात है । क्योंकि राउंड टेबिल कान्फ्रेंस में आया हुआ अछूत प्रतिनिधि जो ६ करोड़ प्रजा का प्रतिनिधि होने पर भी हिंदू-धर्म में त्याज्य और मनुष्य होते हुए भी मानुषिक अधिकारों से वंचित है, स्वायत्त शासन ( Responsible Self-governing constitution ) मांग करता है। वह स्वाभाविक रीति से यह सोचता है कि हमारे
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