१६० गोल-सभा हो जाने की आवश्यकता पर जोर दिया गया । (४) पृथक्करण के बाद ब्रह्म-देश की रक्षा के अच्छे प्रबंध करने की बात कही गई । (५) यदि भारत-सरकार राजी हो, तो उसी के वैज्ञा- निक विभागों से, उचित शतों पर, बर्मा-सरकार के पृथक्करण के बाद अपना भी काम चलाना चाहिए अथवा नहीं, इस पर विचार किया जाय । (६) पृथक्करण इस भाँति हो कि उससे व्यवसाय-वाणिज्य को कम-से-कम धक्का पहुंचे, तथा भारत और बर्मा में वाणिज्य के संबंध में समझौता हो जाय । चाचल का भाषण यह भाषण ११ दिसंबर, सन् ३० को लंदन में, इंडियन सोसा- इटी की मीटिंग में, राइट ऑनरेब्ल विंस्टन चचिल, सी० ए०० एम्० पी० द्वारा दिया गया था। विंस्टन चर्चिल अनुहार-दल के प्रभावशाली व्यक्ति हैं। आप बड़े दबंग और जोरदार बोलने वाले और बड़े मानी हैं। हिंदोस्तानियों से संधि-चर्चा तक करने में आपका अपमान होता है । इस भाषण में 80% इंगलैंड- वासियों के हृदय की झलक थी। भाषण इस प्रकार है- "हमारे खयाल से हमारा यह कर्तव्य है कि हम देश का ध्यान भारतीय समस्याओं की वस्तु-स्थिति की धारणा के अतयं रीति से बदल जाने की ओर दिलावें, जिसने गत १२ महीनों में संकट की रेखा खींच दी है। "चारो ओर से हम सुनते हैं कि भारत ने तीब्र गति से कदम उठाया है, और वह पूर्ण औपनिवेशिक राज्य चाहता है, जिसमें
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