पंद्रहवाँ अध्याय १८६ ४-सब अदालती झगड़ों के निबटारे के लिये फेडरल सुप्रीम कोर्ट कायम किया जायगा। ५-खानगी मामलों में फेडरल शासन के अधिकारी हस्त- क्षेप न करेंगे। ३ दिसंबर को बर्मा के पृथक करने पर विचार करने को बर्मा- उप-समिति ११ सदस्यों की बना दी गई। इसके सभापति सर रसल हुए। इसने प्रकाशित किया कि बर्मा के पृथक् होने पर भी भारत से उसका महाद्वीपिक संबंध बना रहेगा। १० दिसंबर को प्रधान मंत्री के ऑफिस में एक सभा हुई, जिसमें प्रधान मंत्री, एटर्नी जनरल सर विलियम जोविट, श्री- वेजवुड बेन, सर आगाखाँ, सर मुहम्मद शफी, श्रीग़ज़नवी, श्रीजिन्ना, मौ० मुहम्मदअली, श्रीफजलुल हक, श्रीनिवास शास्त्री, श्रीचिंतामणि, जयकर, डॉ० मुंजे, सर प्रभास मित्र, राजा नरेंद्र- नाथ आदि प्रमुख सदस्य सम्मिलित थे। जिन्ना की १४ शर्तो पर विवाद हुआ, पर निर्णय कुछ भी नहीं हुआ। १२ दिसंबर को बर्मा-सब-कमेटी ने अपना काम पूरा कर लिया। उसकी रिपोर्ट के ६ अंश बने-(१) ब्रिटिश सरकार घोषणा कर दे कि ब्रह्म-देश को भारत से पृथक् करने की बात हम मानते हैं, और इस पृथक्करण से ब्रह्म-देश की राजनीतिक उन्नति में बाधा न होगी। (२) उस देश के भारतीयों तथा अन्य अल्प-संख्यक लोगों के उचित स्वार्थों की रक्षा की जायगी। (३) भारत-सरकार और ब्रह्म-देश-सरकार में आर्थिक समझौता
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