चौदहवां अध्याय १८३ कर का ही नहीं, पर उद्योग-धंधों आदि का भी सम्मिलित विकास हो, ऐसे उपाय सोचे जाने चाहिए । गोल-सभा इस समस्या पर उचित विचार कर सकेगा। खरीते पर कुछ पत्रों की सम्मतियाँ 'दि न्यूज़ क्रॉनिकल' का कहना है-"भारतीय गवर्नमेंट की योजनाएँ अव्यावहारिक हैं, और उनकी उसी प्रकार समा- लोचना होगी, जिस प्रकार साइमन कमेटी की रिपोर्ट की हुई थी।" इसी तरह 'डेली टेलीग्राफ' भीभारतीय गवर्नमेंट की योजनाओं का घोर विरोध करता हुआ कहता है-"व्यवस्थापिका सभा में धारा-सभा के चुने हुए मेंबरों में से बहुत-से मेंबर होने चाहिए। इस योजना का गवर्नमेंट के शासन पर भयंकर प्रभाव पड़ेगा।" 'मॉर्निग पोस्ट ने लिखा- भारतीय गवर्नमेंट की मौज- संबंधी योजनाएँ द्वैध-शासन का आभास दिलाती हैं। ऐसी गवर्नमेंट, जो धारा-सभा के लिये अधिक उत्तरदायी नहीं है, धीरे-धीरे उसके अधिकार में आ जायगी, और फ़ौज गवर्नमेंट की ओर खींची जायगी। भारतीय राजा, जिन्हें भारतीय फौजों के द्वारा नहीं, बल्कि सम्राट की फौजों के द्वारा रक्षा की गारंटी दी गई है, भारतीय फौजों से रक्षित होना कभी स्वीकार न करेंगे।" लाहौर के 'ट्रिब्यून' ने लिखा था-"खरीते में जो योजनाएँ दी गई हैं, उनके अनुसार अधिकांश भारतीय राजनीतिज्ञों ने गोल-सभा का उचित ही बहिष्कार किया है। उससे भारत के
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