गोल-सभा का संबंध क्रमशः (Continuous) रहने की संभावना की जा सकती है । उदाहरण के लिये फौज, अंतर्राष्ट्रीय संबंध, अर्थ और शांति-व्यवस्था के विभाग । द्वितीय वह श्रेणी, जिसमें पार्लियामेंट का नियंत्रण समय-समय पर ही होने की संभावना होगी। इस श्रेणी में वे कर लगाने और बढ़ाने के मामले रहेंगे, जिनका संबंध केंद्रीय सरकार से है । चुंगी और व्यावसायिक नीति तथा रेलवे का प्रबंध आदि भी इसी श्रेणी में आवेंगे। इनके अतिरिक्त और जो विभाग हैं, वे तीसरी श्रेणी में आवेंगे। हमें आशा करनी चाहिए कि इस श्रेणी की कार्यवाही में पार्लिया- मेंट शायद ही कभी हस्तक्षेप करे । प्रांत सिंध और उड़ीसा के सीमा-निर्धारण के लिये दो कमेटियों की स्थापना करने की सिफारिश की गई है। प्रांतीय व्यवस्था-सभाएँ प्रांतीय कौंसिलों का कार्यकाल पाँच वर्षों का कर दिया जाय। व्यवस्था-सभा में और अधिक सदस्यों के रखने की बात का ठीक- ठीक फैसला भिन्न-भिन्न प्रांतों में अलग-अलग निर्वाचनाधिकार ( Franchise) की जाँच-कमेटियां नियुक्त होकर करें । जब सदस्यों की संख्या बढ़ जायगी, तब भी सरकार द्वारा सदस्यों के चुनने का अधिकार उतनी ही मात्रा में बना रहे, जितने की कमीशन सलाह देता है, ऐसी हमारी राय नहीं है । स्त्रियों के निर्वाचन के लिये कोई अलग प्रबंध न किया जाय ।
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