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चौदहवां अध्याय १७५ पत्र में लिखा गया है कि राजनीतिक दलों में प्रधानतः पेशेवर ( Professional ) व्यक्ति हैं, जिनके विचारों को सामयिक समाचार-पत्र प्रभावित करते और एकमत होने में सहायता पहुंचाते हैं। शासन-प्रणाली में परिवर्तन करने की नीति के कारण वे आपस के भेद को मिटाकर बाह्य संघटित रूप दिखलाते हैं। सामाजिक कारणों से भी उनकी राजनीतिक नीति में एकता देख पड़ती है । व्यवसायियों का यह अनुभव यद्यपि हाल का है कि राजनीतिक दबाव डालकर व्यावसायिक सुविधाएँ प्राप्त की जा सकती हैं, परंतु बंबई का व्यवसायी दल तन-मन-धन से व्यवस्था भंग के आंदोलन में सहायता दे रहा है। श्राशा तो ऐसी की जाती थी कि यह दल उग्र आंदोलन से अपनी क्षति का विचार कर उसका साथ नहीं देगा। जमींदार-दल नासमझ आंदोलनकारियों से प्रायः अलग है। गुजरात इस बात का अच्छा प्रमाण है । किसान-जनता राज- नीति की समस्याओं का ठीक-ठीक ज्ञान नहीं रखती। उद्योग- धंधेवाले तथा मजदूर बेजानकार और अशिक्षित हैं । जनता के सामूहिक हित का नाम लेकर तथा धर्म, भूमि और साम्य- वाद-संबंधी संदेश का प्रचार कर जन-समूह पर प्रभाव डाला जा रहा है। राष्ट्रीय माँग संपत्ति-संबंधी तथा शिक्षा-संबंधी उन्नति होने के कारण आज भारतवर्ष में राष्ट्रीय तथा व्यक्तिगत आत्म-सम्मान का भाव बढ़ा