तेरहवां अध्याय १६३ स्वतंत्र होना चाहता हूँ, जैसा कैनाडा में वहाँ का एक निवासी है। भारतीय अपने देश की रक्षा नहीं कर सकते, मैं यह बात सुनने को तैयार नहीं, क्योंकि इसका उत्तरदायित्व ब्रिटिश पर है। अब तो प्रश्न यह है कि भारत इंगलैंड के साथ मिलकर चलेगा अथवा विरुद्ध होकर । सरदार उज्जलसिंह सिक्खों के प्रतिनिधि थे। उन्होंने कहा कि प्रांतीय स्वतंत्रता भी कुछ अर्थ नहीं रखती, जब तक कि केंद्रीय सरकार स्वतंत्र और उत्तरदायित्व पूर्ण न हो । शासन की श्रेष्ठता इसी में है कि अल्प- संख्यक दलों के साथ भी पूरा न्याय हो । अतः सिक्खों के अधिकारों का ध्यान रक्खा जाय । भारतीय पाश्चात्य लोगों की अपेक्षा अधिक शांति-प्रिय हैं, अतः उनके अधिकार मिल जाने पर अशांति रह ही नहीं सकती। ऐसा ढाँचा तैयार किया जाना चाहिए, जो हमारी विचित्र परिस्थिति के लिये ठीक उपयुक्त हो। सर ए० पी० पत्रो मद्रास लेजिस्लेटिव कौंसिल के सर पत्रो ने भी केंद्रीय सर- कार के स्वतंत्र और उत्तरदायित्व पूर्ण होने पर बल दिया, और अनुरोध किया कि भारत को भी ब्रिटिश कॉमनवेल्थ के अन्य राष्ट्रों के समान बना दिया जाय, और प्रत्येक जाति में गरम दलवाले होते हैं। बुद्धिमत्ता और राज्य करने की चतुराई तो इसी में है कि भारत की ऐसी शक्तियों के साथ मेल करके ऐसा विधान तैयार किया जाय, जिस पर वे कहा कि
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