तेरहवां अध्याय १६१ झोनो दलों के प्रतिनिधियों ने हमारे औपनिवेशिक स्वराज्य के अधिकार को स्वीकार कर लिया है। फेडरल शासन का आदर्श बिल्कुल नवीन है । मैं उसका पुराना विरोधी हूँ; पर अब उसके पक्ष में हो गया हूँ । देशी नरेशों की उदार नीति ने मुझमें ऐसा परिवर्तन कर दिया है। कांग्रेस से विलायतवाले व्यर्थ ही डरते हैं। वह सुसभ्य और सुसंस्कृत व्यक्तियों की संस्था है। वे अपने कार्यों में सिद्ध और दक्ष हैं। वे हमारे ही बंधु-भाई हैं। यदि जनता की माँगें पूरी की जायँ, तो कांग्रेस ऐसे वंश-गत अप- राधियों की संस्था नहीं है, जो हर दशा में बाधा डालती रहेगी।" सांगली के चीफ ने अपने भाषण में छोटी-छोटी रियासतों की समस्या पर कहते हुए भारतीय शासन-विधान में इनकी स्थिति के संबंध में गंभीर विचार किए जाने पर जोर दिया। कर्नल गिडनी ने एंग्लो-इंडियनों की ओर से प्रांतों को भीतरी प्रबंध में स्वतं. त्रता दे देना अत्यंत आवश्यक बतलाया । आपने अल्पसंख्यक जातियों के अधिकारों को सुरक्षित किए जाने पर बल दिया। महाराजा पटियाला ने कहा कि यदि भारत साथी कॉमनवेल्थ की भाँति ब्रिटिश- साम्राज्य का सम्मानित साझेदार रहा, तो पूर्व और पश्चिम में ऐसा स्वतंत्र सहयोग होगा, जैसा संसार ने पहले कभी नहीं देखा होगा। राजा लोग सर तेजबहादुर सप्रू से सहमत हैं कि वे
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