गोल-सभा. रक्रमें दी हैं। उनकी साख उठ जाने की बात तो ब्रिटेन ने कभी नहीं कही, फिर भारत के संबंध में वह ऐसी धारणा क्यों रखता है ? फौज-विभाग के बारे में यह कहना ठीक नहीं कि अगरेज अपने ऊपर भारतीय अफसरों का रहना पसंद नहीं करेंगे। जब हाईकोर्ट के प्रधान भारतीय जज के मातहत कितने ही अँगरेज़ न्यायाधीश रहते और सिविल सर्विस में भी उनका अधिकार मानते हैं, तो इस क्षेत्र में भी मानेंगे । जातीय प्रश्न उठाना कभी ठीक नहीं । सब सम्राट की प्रजा हैं, और सभी अधिकार रखते हैं। अंत में सर सप्रू ने कहा कि इस समय सबसे बड़ी श्राव- श्यकता है दृष्टिकोण बदल देने की। श्रीसप ने लॉर्ड रीडिंग की इस बात पर व्यक्तिगत रीति से विचार करने को कहा कि प्रांतीय स्वाधीनता विना केंद्रीय अधिकार के नहीं चल सकती। ऐसा क्रम तो हस्ते-भर में टूट जायगा । कल्याण इसी में है कि विश्वास और साहस के साथ भारतीय स्थिति का सामना और भारत की योग्यता पर विश्वास किया जाय । भारत बेचैन हो रहा है, उसे सिर्फ धीरज दिलाने से काम नहीं चलेगा। बीकानेर-नरेश ने कहा-"भारत की उन्नति में हम सब तरह से सहयोग देने के लिये तैयार हैं। पर हम चाहते हैं कि हमारे साथ जो संधियां की गई हैं, वे ज्यों-की-त्यों रहें ।भारत की फेडरल- प्रणाली में भी हम शामिल होने के लिये तैयार हैं, बशर्ते कि
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