गोल-सभा And they took truce with tyrants and grew tame And gathered up cast crowns and creeds to wear, And rags and shards regilded, then she took In her bruised hands their broken pledges and eyed These men so late so loud upon her side With one inevitable and tearless look, That they might see her face whom they forsook; And they bebeld what they had left, and died.". February, 1870 -Swinburne भावार्थ-"उनकी मातृभूमि, उन सबका लाड़-प्यार से पालन- पोषण करनेवाली जननी, आहत, घावों से क्षत- विक्षत, नग्न, शर्म से गर्दन झुकाए हुए और जंजीरों से कसी हुई अपने देश- द्रोहियों के सामने खड़ी हुई है। परंतु उसे देखते ही उन्होंने उपेक्षा से अपना मुँह फेर लिया, और शपथ-पूर्वक कहा कि न तो वे इस स्त्री से परिचित हैं, और न वे उसका नाम ही जानते हैं। उन्होंने निष्ठुर, अत्याचारी अधिपतियों से संधि कर ली, और उनके वशीभूत होकर पालतू कुत्तों की नाई पूँछ हिलाने लगे, और पुराने मान-सम्मान और अंध-विश्वासों की ओट में अपने को छिपाने लगे, और पुराने चिथड़ों को पेबंद लगाकर, उन्हें नया बनाकर, पहनने लगे। तब वह अपने क्षत-विक्षत और घाव-पूर्ण हाथों में उनकी कुचली और ठुक- राई प्रतिज्ञाएँ लेकर उनके सम्मुख गई, और उन लोगों की ओर, जिन्होंने अभी-अभी उसकी तरफ से गर्जना की थी, और उसे मुक्त करने की डींग मारते थे, अश्रु-रहित, परंतु भाव-पूर्ण आँखों
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