गोल-सभा इसके उपरांत प्रधान मंत्री ने व्यवस्था भंग की नीति का विरोध किया, मिलकर उदारता-पूर्वक काम करने का निवेदन किया, और सम्राट के मनोयोग को कार्य-सिद्धि में सहायक बत- लाया । "सभा में शरीक होनेवाले पार्लियामेंट के तीनो प्रधान इलों के एकत्र होने में सभा की गुरुता ही प्रकट होती है" आदि बातें कहकर और सम्मेलन के महत्त्व का दिग्दर्शन कराकर उन्होंने अपना भाषण समाप्त किया। महाराजा काश्मीर ने कहा कि इंगलैंड तथा भारतवर्ष दोनो में से कोई भी इस कान्फ्रेंस की असफलता सहन नहीं कर सकता। हमें एक दूसरे से मिलकर रहने के लिये कुछ आदान-प्रदान करना पड़ेगा। यदि हम इसमें सफल न हुए, तो इंगलैंड को अपेक्षा भारत की कुछ कम हानि न होगी। हम एक दूसरे के सामेदार हैं, यहाँ मिलकर बैठे, और साझ के लाभ को तय कर लें। महाराजा बड़ौदा ने कहा कि राजों तथा भारत की जातियों की आकांक्षाओं में थोड़ी रियायत से काम लेकर ही हम स्व० महारानी विक्टो- रिया के शब्दों को पूर्ण रूप से समझ सकते हैं, जिन्होंने कहा था कि “उनकी समृद्धि में हमारा बल, उनके संतोष में हमारी स्थिरता और उनकी कृतज्ञता में उनका मीठा फल है।" हमें चाहिए कि हम सच्चे दिल से एक दूसरे से विश्वास रखते हुए ऐसे महान् आदर्श की प्राप्ति के लिये प्रयत्नशील हों।
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