१४४ गोल-सभा कार के प्रतिनिधि मौजूद हैं। मैं बड़े ही मनोयोग और सहानु- भूति के साथ आपकी कार्यवाही का सूक्ष्म निरीक्षण करूँगा। मेरा निरीक्षण बिल्कुल निश्शंक भाव से तो नहीं होगा, पर शंका से अधिक विश्वास की ही प्रधानता रहेगी। "भारतवर्ष की मेरी प्रजा की अवस्था का मुझ पर गहरा असर पड़ता है, और वह असर आपकी सम्मेलन की बातचीत में बरा- बर बना रहेगा। क्या बहुसंख्यक, क्या अल्पसंख्यक, स्त्री और पुरुष, नागरिक और किसान, मंत्री, ज़मींदार और रैयत, बल- शाली, निर्बल, धनी, दरिद्र, जातियाँ, समुदाय, सब पर मेरी दृष्टि रहती है, और उनके अधिकारों पर मैं विचार करता हूँ । संपूर्ण भारत का जन-समूह मेरा गहन ध्यान आकर्षित करता है। "मुझे इसमें संदेह नहीं कि स्वराज्य की नीव भिन्न-भिन्न मांगों और उस जवाबदेही के संयोग से बँधती है । उन माँगों और उस जवाबदेही को स्वीकार करना और उसका भार ग्रहण करना पड़ता है । भारत की भविष्य शासन-विधि इस नींव पर खड़ी होकर अपनी माननीय आकांक्षाओं को प्रकट करेगी। आपकी बातचीत इसी परिणाम की प्राप्ति के लिये मार्ग-प्रदर्शक हो, और आपके नाम इतिहास में सच्चे भारत-हितैषी और मेरी प्रजा के हितकामियों तथा हित-संवर्द्धकों के रूप में अंकित हों। मैं प्रार्थना करता हूँ कि भगवान आपको प्रचुर ज्ञान, धैर्य और सद्भाव प्रदान करे। यह भाषण ८ मिनट में समाप्त हुआ।
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