ग्यारहवां अध्याय १३६ सामग्री प्रस्तुत थी। उन्हें पूरा-पूरा आराम पहुँचाने का सुप्रबंध था । प्रधान मंत्री मि० रैमजे मैकडानेल्ड की गूढ नीति इस अवसर को चूक नहीं सकती थी। उन्होंने भारतीयों को आदर- सरकार से ही प्रसन्न और संतुष्ट कर देने की भरपूर चेष्टा की। नरेशों ने तो और भी गहरे गोते लगाए । एक दावत के अवसर पर अलवर प्रभु ने, बग़ल में बैठी प्रधान मंत्री की कुमारी कन्या मिस इसावेल मैकडानेल्ड से वे-वे हास्य-परिहास किए कि बेचारी शर्मा गई । उधर महाराजा बड़ौदा की बग़ल में बैठी प्रिंसेस आर्थर कनाट हँस रही थीं। भोजों, अवकाशों, खेलों और निमंत्रणों की भरमार थी। पर इनमें तथ्य क्या था, यह इस घटना से भले प्रकार प्रकट होता है। एक अवसर क्रायडन में हवाई खेलों का था, और उसमें प्रति- निधियों को भी निमंत्रण दिया गया था। लेकिन वहाँ पहुँचने पर इनका कुछ भी स्वागत नहीं किया गया। बैठने की सीटें तक नहीं थीं। नाश्ता-पानी भी कुछ नहीं था। 'सेंडविचेज़' जल्दी से मँगाया गया, और वह उन बेचारे राज-अतिथियों ने उसी प्रकार खाया, जिस प्रकार कौए मकान के छप्पर पर बैठकर खाते हैं। उस समय प्रधान मंत्री उधर होकर निकले भी, पर दृष्टि बचाकर चले गए। इस स्वागत-सत्कार की पराकाष्ठा तो उस समय हुई,जब एक उच्च ब्रिटिश अधिकारी ने सी० पी० के भूतपूर्व गवर्नर श्री० तांबे से पूछा कि क्या प्रतिनिधियों में से कोई अंगरेजी भी जानता है ? श्रीजयकर की मनोवृत्ति ने विचित्र रूप धारण कर लिया।
पृष्ठ:गोल-सभा.djvu/१५३
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।