१२८ गोल-सभा बीच-बीच में रूटर ने आपके स्वास्थ्य की चिंतनीय अवस्थाएँ तार द्वारा संसार को बता दी थी, पर यह तो किसी को भी स्नयाल न था कि आप सचमुच ही इतना शीघ्र एकाएक प्राण त्याग देंगे। आपकी मृत्यु गोल-सभा के इतिहास में एक असा- धारण घटना हुई । मौलाना मुहम्मदअली एक प्रचंड शक्ति के स्वामी थे। वह प्रकृत योद्धा थे। जहाँ जब तक रहे, बराबर उद्ग्रीव रहे । जिस प्रकार गोखले, तिलक, लालाजी ओर स्वामी श्रद्धानंदजी के अंतिम क्षण देश के लिये अर्पित हुए, उसी प्रकार इनके भी हुए। यह सदेव, सर्वत्र प्रथम श्रेणी के व्यक्ति रहे। दबना इनका स्वभाव न था। दबंग रहना इनकी बपौती थी। उनके काम का ढंग चाहे जैसा भी हो, और विचार चाहे जो कुछ हों, हम इस पर बहस के अधिकारी नहीं । पर वह ऐसे थे कि बड़े-बड़े याद्धा भी उन्हें अपना दाहना हाथ बनाने में गौरव समझते थे। वह जैसे विचारशील थे, वैसे ही साहसी भी । वह अपनी मुसलमानियत को संसार में सर्वोपरि सम- मते थे, और उनकी यह बात देश के लिये चाहे भी जितनी हानिकर हो, प्यार करने के योग्य थी उनका शरीर रोबीला, शाही जमाने के प्रतिष्ठित मुसलमानों- जैसा, नेत्रों में तेज, होठों पर दृढ़ता, मूंछों में ऐंठ और खड़े होने के ढंग में एक सिंह का बाँकपन था । बोलना क्या था, दहाड़ना था। केवल स्वर ही नहीं, शब्द भी मानो तोप के गोले-से निक- लते थे। कर्नल वैजवुड ने एक बार लिखा था-"कमरे में सिर्फ ।
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