दसवाँ अध्याय १२७ समझौते में खासी पंचायत जमा हा गई थी। कांग्रेस की ओर से तो कोई सदस्य गया ही न था। कांग्रेस के सिवा जो दूसरे दल देश में है, और गोल-सभा में गए, उनमें लिबरल पार्टी ही बल- शाली थी। इस पार्टी के प्रमुख सदस्य सर तेजबहादुर सप्रू की सम्मति में उस समय गोल-सभा न तो विशेष प्राशा ही बंधानेवाली थी, और न विशेष निराश हो करती थो। श्रीनिवास शास्त्री ने कहा था-"कांग्रेस के न शरीक होने से बाधा अवश्य पड़ी, पर जो सदस्य चुने गए हैं, वे संतोषप्रद और यथेष्ट हैं।" तीसरे प्रमुख सदस्य सी. वाई. चिंतामणि ने कहा था-"गोल सभा में हम किसी प्रसन्नता के साथ नहीं जा रहे । हमारा कर्तव्य महान है, और हमारी अवस्था संकट-जनक ।" मौलाना का बलिदान गोल-सभा के प्रतापी सदस्य मौलाना मुहम्मदअली ने अघ- टित रूप से गोल-सभा को आत्म-बलिदान दिया। यद्यपि उन्होंने अपने भाषण में ललकारकर कहा था कि यदि मेरे मुल्क को अँगरेज आजादी नहीं देंगे, तो मेरी कब्र के लिये जगह देनी होगी। परंतु यह किसी को भी भरोसा न था कि वह इस प्रकार सचमुच ही अपना बलिदान दे देंगे। भारत से रवाना होने के समय आप अस्वस्थ थे और आपको कुर्सी पर बैठाकर जहाज में सवार कराया गया था। वहाँ आप कड़ी मेहनत करते रहे। भाषण, लेखन, मुलाकातों में निरंतर व्यस्त रहे । उधर डॉक्टर लोग देख-भाल भी करते रहे।
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