नवाँ अध्याय ६७ में जो परिवर्तित कर दिया है, उसके लिये मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। भविष्य हमारे लिये क्या लाना चाहता है, मुझे नहीं मालूम ! किंतु अतीत काल ने हमको सजीव और मूल्यवान् बनाया है, और हमारे शुष्क जीवन में उत्थान की ओर तेजी के साथ दौड़ने में एक अद्भुत गति उत्पन्न कर दी है ! यहाँ नैनी- जेल में बैठकर मैंने अहिंसा-अख की अद्भुत शक्ति का भली भाँति मनन किया है। उसने मेरे जीवन को बिल्कुल ही परि- वर्तित कर दिया है। अहिंसा के सिद्धांत का देश ने इस समय, और विशेषकर हिंसा की स्वाभाविक उत्पत्ति कर देनेवाले स्थलों के सामने आ जाने पर भी, जिस प्रकार पालन किया है, उससे मेरा विश्वास है कि आप असंतुष्ट न होंगे। मैं अब भी आपकी ग्यारह शतों के संबंध में असंतोष रखता हूँ । यद्यपि इसका यह अर्थ नहीं कि मैं उनमें से किसी एक बात से भी सहमत नहीं । वास्तव में वे बहुत महत्त्व-पूर्ण हैं, किंतु मैं नहीं समझता कि वे स्वाधीनता की पूर्ति करेंगी! फिर भी मैं निश्चय-पूर्वक आपकी इस बात से सहमत हूँ कि न होने की अपेक्षा कुछ भी राष्ट्र को शक्ति प्रदान करनेवाले अधिकारों के प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए। पिताजी को इंजेक्शन दिया गया है। कल संध्या काल की बातचीत में बड़े परिश्रम और कष्ट के साथ उन्होंने भाग लिया था। जवाहरलाल इन मुलाकातों में महात्माजी ने मि० जयकर से जो बातचीत
पृष्ठ:गोल-सभा.djvu/१०७
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।