पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/९६

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इन्सान पैदा हुमा १०० उसके लिए दया से मेरा हृदय फटा जा रहा था । मुझे ऐसा लगा जैसे उसके आँसू मेरी आँखों में लहरा रहे हो । मुझे ऐसा अनुभव हुश्रा जैसे मेरा हृदय फट जायगा । मैं चीखना चाहता था और चीखा भी । "कोशिश करो जल्दी करो ! " और देखो - मेरे हाथों पर एक छोटा सा मानव लेटा हुआ था चुकन्दर की जड़ की तरह लाल । मेरी आँखों से आँसू बहने लगे, परन्तु अपने इन घाँसुओं में से मैंने देखा कि यह छोटा सा लाल प्राणी ससार से बुरी तरह असन्तुष्ट था । वह बराबर लाते फेकता, छटपटाता और चीखता रहा यद्यपि यह श्रादमी अपनी माँ से जुड़ा हुआ था । इसकी आँखें नीली थीं । इसकी छोटी सी विचित्र नाक ऐसी लग रही थी मानो उसे उसके लाल , सिकुड़े हुये चेहरे पर चिपका दिया गया हो । जब वह चीखता तब उसके होंठ हिलते । " या - या श्रा - श्राह . . . . या - श्रा - बा - श्राह । " उसका शरीर इतना चिकना था कि मुझे भय हुश्रा कि कहीं वह मेरे हाय से फिसल न जाय । मैं अपने घुटनों के बल बैठा हुआ उसके मुंह को देखता जाता श्रीर हरता - उसे देखकर एक प्रसन्नता की हसी हँसता और में यह भूल गया कि अब इसके बाद क्या करना हैः । । "नाल को काट दो .. . " माँ फुसफुसाई । उसकी आँखें बन्द थीं । उसका चेहरा निष्प्रभ और सफेद पड़ गया था - बिल्कुल मुर्दे की तरह । उसके नीले होठ मुश्किल से हिले जब उसने कहा , "इसे काट दो . अपने चाकू से । " परन्तु मॉपड़ी में रहते समय किसी ने मेरा चाकू चुरा लिया था इसलिये मैंने नाल को अपने दाँतों से काट दिया । बच्चा श्रोरेल की असली धीमी श्रावाज से चीखा । माँ मुस्काई । मैंने उसके नेत्रों में अदभुत तेजी से लौटती हुई चमक को देना और उनकी उस अतल गहराई में एक नीली ज्याला चमक उठी । उसके मैले और काले हाय अपने पेटीकोट