पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/८३

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58 विदूषक वह अधेड़ अवस्था और काली आँखों वाला एक अँग्रन था । सर्कस के बीच में खड़ा होकर वह अत्यन्त कुशलता से दर्शकों का मनोरञ्जन करता था। उसके चिकने छोटे से चेहरे से चालाकी और विशिष्टता के भाव झलकते परन्तु उसकी गूंजती हुई श्रावाज में मजाक उड़ाने की ध्वनि भरी रहती जो मेरे कानों को बड़ी कर्कश लगती उस समय जब वह एक बड़े वनविलाव की तरह सर्कस के मच पर खड़ा होकर रूसो शब्दों का टूटा-फूटा उच्चारण करता । शीशे के सामने खड़े होकर झुकने वाली घटना के बाद मैंने उसका पीछा करना प्रारम्भ कर दिया । सर्कस के बीच में होने वाले क्षणिक अवकाश के समय मैं उसके कमरे के छोटे से दरवाजे के आसपास मंडराता रहता और उसे अपने चहरे पर सफेदी पोतते और उस पर काले और लाल रंग की रेखाएं बनाते देखता रहता । वह प्रत्येक कार्य करते समय सदैव अपने आप से बातें करता या सोटी बनाया हुआ हमेशा एक ही गाना गुनगुनाया करता। मैंने उसे शराबखाने में छोटे-छोटे घूट लेकर वोदका पोते हुए देखा। उसने टूटी-फूटी रूसी भाषा में नौकर से पूछा : "क्या समय है ?" "बारह वजने में दस मिनट हैं।" "श्रोह, किवना समय हो गया, परन्तु इतना ज्यादा नहीं" और उसने रूसी भाषा में गिनना शुरू किया-"श्रोदिन [ एक ], दुवा [दो], तिरी [ वोन ], चेरतिरी [ चार ], चेरतिरी सबसे आसान है " ___ उसने शरावखाने के काउन्टर पर एक चाँदी का सिक्का फेंका और, गुनगुनाता हुश्रा सड़क पर निरल गया . "तिरी, रविरी-तिरी, चेरतिरी ।" ___ वह हमेशा प्रदेला घूमता था । मैं सदैव जासूस की तरह उसके पीछे लगा रहता । मुझे ऐसा लगा कि इस व्यक्ति का जीवन वड़ा रहस्यपूर्ण और अद्भुत है । प्रत्येक वस्तु के प्रति उसका दृष्टिकोण मेरे अपने दृष्टिकोण से पूर्णत भिन्न है। अनेक वार मैंने कल्पना की कि मानो मैं इझलैंड में