पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/७७

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

७६ मालवा


"अच्छी बात है " वासिनी से हाथ मिलाते हुए सर्योमका ने कहा-उसके हाथ उसने अपनी उभरी हुई नसों वाले पंजे में पकड़ते हुए जिस पर लाल वाल उगे हुए थे, मिलाये । वह उसके उदास गम्भीर चेहरे की श्रीर देखकर मुस्कराया। "लिकोवो-निकोलस्काया काफी बढ़ी जगह है ......."यह उधर देहात में बहुत मशहूर है और हम लोग इससे करीव चार मील दूरी पर रहते हैं • ..."वासिली ने समझाते हुए कहा। "अच्छी बात है, ठीक है....."अगर मैं कभी उधर गया तो जरूर पार्क गा॥ "अलविदा "अलविदा, भाई" "अलविदा, मालवा,” उसकी तरफ विना देखे हुए उसने घुटती हुई आवाज में कहा। मालवा ने धीरे से अपनी बाँह से होठ पोंछे और वासिनी के कन्धों पर अपने दोनों सफेद हाथ खामोशी और गम्भीरतापूर्वक देखते हुए तीन' बार उसके गालों और होठों को चूमा ।। वासिनी परेशान हो उठा और असम्बद रूप से कुछ बड़वढ़ाया। याकोव ने अपनी कुटिल मुस्कान छिपाने के लिये सिर नोचा कर लिया और सर्योमका ने ऊपर भासमान की तरफ देखा और धीरे से जम्हाई ली । "तुम्हें पैदल चलने में बड़ी तकलीफ होगी," उसने कहा । "शोह, कोई बात नहीं अच्छा, अलविदा, याकोव " "अलविदा" वे दोनों, यह न जानते हुए कि क्या किया जाय, एक दूसरे के सामने खड़े थे । इस उदास वाक्य-"अलविदा", ने जो वहाँ इतनी बार और उवा देने वाले ढग से कहा गया था, याकोव के मन में अपने बाप के लिए एक कोमल भावना उत्पन्न करदो परन्तु वह यह नहीं जानता था कि उसे प्रकट कैसे करे । मालवा की तरह उसका प्रालिगन करे या सर्योमका को