पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/७५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मालवा . याकोव तब बहादुरी से आगे बढ़ा और प्रसन्न होकर बोला : " सच्चे साथियों को बधाई ! " उसके बाप ने उसकी तरफ एक तेज निगाह फेंकी और हटा लो । मालया ने पलक भी नहीं हिलाई परन्तु सर्योमका ने टांग हिलाते हुए गहरी धीमी आवान में कहा • " अरे देखो अपना प्यारा बेटा याश्का दूर देश से लौट आया है " और फिर वह अपनी पहली आवाज में कहने लगा "यह इस लायक है कि इसकी चमड़ी उधेड़ कर मेड़ की खाल की तरह उसे ढोल पर मद दिया जाय । " मालवा धीरे से हँसी । " बड़ी गर्मी है " याकोष बैठते हुए बोला । वासिली ने फिर उसकी तरफ देखा और बोला . "मैं तुम्हारा इन्तजार कर रहा था , याकोव । " याकोव ने देखा कि उसकी अावाज पहले से कोमल थी और उसका चेहरा भी पहले से कम उम्र का दिखाई दे रहा था । ___ "मैं खाने पीने का सामान लेने वापिस पाया हूँ " उसने घोषणा की और फिर उसने सोझका से सिगरेट बनाने के लिए तम्बाकू मांगी । "तुम मुझ से तम्बाकू नहीं पा सकते , बेवकूफ छोकरे " सर्योझका ने विना हिले दुले जवाब दिया । "मैं घर जा रहा हूँ, याकोव, " वासिली ने जोर देकर कहा और रेत पर उँगली से निशान बनाता रहा । " ऐसी वात है ? " बाप की तरफ भोलेपन से देखते हुए याकोव ने जवाव दिया । " तुम्हारा क्या ख्यात है " " क्या तुम यहीं ठहर रहे हो ? " " हाँ , मैं यहीं रहूँगा घर पर हम दोनों के लिये काफी काम नहीं है । " " अच्छा, मुझे कुछ नहीं कहना । जैसा तुम्हें ठीक लगे करो ... ..